Re: बाल ठाकरे की जीवन यात्रा
शिवसेना ने जल्द ही अपनी जड़ें जमा लीं और 1980 के दशक में मराठी समर्थक मंत्र के सहारे बृहनमुंबई नगर निगम पर कब्जा कर लिया। भाजपा के साथ 1995 में गठबंधन करना ठाकरे के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा मौका था और इसी के दम पर उन्होंने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा। वह खुद कहते थे कि वह ‘रिमोट कंट्रोल’ से सरकार चलाते हैं। हालांकि उन्होंने मुख्यमंत्री का पद कभी नहीं संभाला। बहुत से लोगों का मानना है कि 1993 के मुंबई विस्फोटों के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों में शिव सैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके चलते सेना-भाजपा गठबंधन को हिंदू वोट जुटाने में मदद मिली। ‘मराठी मानूस’ की नब्ज को बहुत अच्छी तरह समझने का हुनर रखने वाले बाल ठाकरे इस कहावत के पक्के समर्थक थे कि ज्यादा करीबी से असम्मान पनपता है और इसीलिए उन्होंने सदा खुद को सर्वश्रेष्ठ बताया। अपने समर्थकों से ज्यादा घुलना मिलना और करीबी उन्हें पसंद नहीं थी और वह अपने बेहद सुरक्षा वाले आवास ‘मातोश्री’ की बालकनी से अपने समर्थकों को ‘दर्शन’ दिया करते थे। प्रसिद्ध दशहरा रैलियों में उनके जोशीले भाषण सुनने लाखों की भीड़ उमड़ती थी। पाकिस्तान और मुस्लिम समुदाय को अकसर निशाने पर रखने वाले बाल ठाकरे ने एक बार मुस्लिम समुदाय को ‘कैंसर’ तक कह डाला था। उन्होंने कहा था, ‘इस्लामी आतंकवाद बढ रहा है और हिंदू आतंकवाद ही इसका जवाब देने का एकमात्र तरीका है। हमें भारत और हिंदुओं को बचाने के लिए आत्मघाती बम दस्ते की जरूरत है।’ बाघ की विविध छवियों के साथ सिंहासन पर बैठने वाले ठाकरे वर्षों तक महाराष्ट्र की राजनीति पर छाए रहे। उनके पास कोई पद या ओहदा नहीं था, लेकिन उनके प्रभाव का यह आलम था कि मातोश्री ने राजनीतिक नेताओं से लेकर, फिल्मी सितारों, खिलाड़ियों और उद्योग जगत की दिग्गज हस्तियों की अगवानी की।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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