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Old 30-11-2012, 03:05 PM   #18
bindujain
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Default Re: अलंकार (प्रेमचंद)

यह वाक्य समाप्त होते ही सिंफक्स के नेत्रों में अग्निज्योति परस्फुटित हुई, उसकी पलकें कांपने लगीं और उसके ष्पााणमुख से 'मसीह' की ध्वनि निकली; माना पापनाशी के शब्द परतिध्वनित हो गये हों। अतएव पापनाशी ने दाहिना हाथ उठाकर उस मूर्ति को आशीवार्द दिया।
इस परकार ष्पााणहृदय में भक्ति का बीज आरोपित करके पापनाशी ने अपनी राह ली। थोड़ी देर के बाद घाटी चौड़ी हो गयी। वहां किसी बड़े नगर के अवशिष्ट चिह्न दिखाई दिये। बचे हुए मन्दिर जिन खम्भों पर अवलम्बित थे, वास्तव के उन बड़ीबड़ी ष्पााण मूर्तियों ने ईश्वरीय पररेणा से पापनाशी पर एक लम्बी निगाह डाली। वह भय से कांप उठा। इस परकार वह सत्रह दिन तक चलता रहा, क्षुधा से व्याकुल होता तो वनस्पतियां उखाड़कर खा लेता और रात को किसी भवन के खंडहर में, जंगली बिल्लियों और चूहों के बीच में सो रहता। रात को ऐसी स्त्रियां भी दिखायी देती थीं जिनके पैरों की जगह कांटेदार पूंछ थी। पापनाशी को मालूम था कि यह नारकीय स्त्रियां हैं और वह सलीब के चिह्न बनाकर उन्हें भगा देता था।
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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