Re: ~!!चन्द्रकान्ता!!~
इतने में कुमार किले के नीचे आ पहुंचे। महाराज से न रहा गया, खुद उतर आये और जब तक वे किले के अन्दर आवें महाराज भी वहां पहुंच गये। वीरेन्द्रसिंह ने महाराज को देखकर पैर छुए, उन्होंने उठाकर छाती से लगा लिया और हाथ पकड़े सीधे महल में ले गये। महारानी उन दोनों को आते देख आगे तक बढ़ आईं। कुमार ने चरण छुए, महारानी की आंखों में प्रेम का जल भर आया, बड़ी खुशी से कुमार को बैठने के लिए कहा, महाराज भी बैठ गये। बायें तरफ महारानी और दाहिनी तरफ कुमार थे, चारों तरफ लौंडियों की भीड़ थी जो अच्छे-अच्छे गहने और कपड़े पहने खड़ी थीं। कुमार की नीची निगाहें चारों तरफ घूमने लगी मानो किसी को ढूंढ़ रही हों। चन्द्रकान्ता भी किवाड़ की आड़ में खड़ी उनको देख रही थी, मिलने के लिए तबीयत घबड़ा रही थी मगर क्या करे, लाचार थी। थोड़ी देर तक महाराज और कुमार महल में रहे, इसके बाद उठे और कुमार को साथ लिये हुए दीवानखाने में पहुंचे। अपने खास आरामगाह के पास वाला एक सुन्दर कमरा उनके लिए मुकर्रर कर दिया। महाराज से विदा होकर कुमार अपने कमरे में गये। तेजसिंह भी पहुंचे, कुछ देर चुहल में गुजरी, चन्द्रकान्ता को महल में न देखने से इनकी तबीयत उदास थी, सोचते थे कि कैसे मुलाकात हो। इसी सोच में आंख लग गई।
सुबह जब महाराज दरबार में गये, वीरेन्द्रसिंह स्नान-पूजा से छुट्टी पा दरबारी पोशाक पहने, कलंगी सरपेंच समेत सिर पर रख, तेजसिंह को साथ ले दरबार में गये। महाराज ने अपने सिंहासन के बगल में एक जड़ाऊ कुर्सी पर कुमार को बैठाया। हरदयालसिंह ने महाराज की चिट्ठी का जवाब पेश किया जो राजा सुरेन्द्रसिंह ने लिखा था। उसको पढ़कर महाराज बहुत खुश हुए। थोड़ी देर बाद दीवान साहब को हुक्म दिया कि कुमार की फौज में हमारी तरफ से बाजार लगाया जाये और गल्ले वगैरह का पूरा इन्तजाम किया जाये, किसी को किसी तरह की तकलीफ न हो। कुमार ने अर्ज किया, ‘‘महाराज, सामान सब साथ आया है।’’ महाराज ने कहा, ‘‘क्या तुमने इस राज्य को दूसरे का समझा है ! सामान आया है तो क्या हुआ, वह भी जब जरूरत होगी काम आवेगा। अब हम कुल फौज का इन्तजाम तुम्हारे सुपुर्द करते हैं, जैसा मुनासिब समझो बन्दोबस्त और इन्तजाम करो।’’ कुमार ने तेजसिंह की तरफ देखकर कहा, ‘‘तुम जाओ। मेरी फौज के तीन हिस्से करके दो-दो हजार विजयगढ़ के दोनों तरफ भेजो और हजार फौज के दस टुकड़े करके इधर-उधर पांच-पांच कोस तक फैला दो और खेमे वगैरह का पूरा बन्दोबस्त कर दो। जासूसों को चारों तरफ रवाना करो। बाकी महाराज की फौज की कल कवायद देखकर जैसा होगा इन्तजाम करेंगे।’’ हुक्म पाते ही तेजसिंह रवाना हुए। इस इन्तजाम और हमदर्दी को देखकर महाराज को और भी तसल्ली हुई। हरदयालसिंह को हुक्म दिया कि फौज में मुनादी करा दो कि कल कवायद होगी। इतने में महाराज के जासूसों ने आकर अदब से सलाम कर खबर दी कि शिवदत्तसिंह अपनी तीस हजार फौज लेकर सरकार से मुकाबला करने के लिए रवाना हो चुका है, दो-तीन दिन तक नजदीक आ जायेगा। कुमार ने कहा, ‘‘कोई हर्ज नहीं, समझ लेंगे, तुम फिर अपने काम पर जाओ।’’
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