View Single Post
Old 08-12-2010, 01:44 PM   #62
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!चन्द्रकान्ता!!~

दूसरे दिन महाराज जयसिंह और कुमार एक हाथी पर बैठकर फौज की कवायद देखने गये। हरदयालसिंह ने मुसलमानों को बहुत कम कर दिया था-तो भी एक हजार मुसलमान रह गये थे। कवायद देख कुमार बहुत खुश हुए मगर मुसलमानों की सूरत देख त्योरी चढ़ गई। कुमार की सूरत से महाराज समझ गये और धीरे से पूछा, ‘‘इन लोगों को जवाब दे देना चाहिए ?’’ कुमार ने कहा, ‘‘नहीं, निकाल देने से ये लोग दुश्मन के साथ हो जायेंगे ! मेरी समझ में बेहतर होगा कि दुश्मन को रोकने के लिए पहले इन्हीं लोगों को भेजा जाये। इनके पीछे तोपखाना और थोड़ी फौज हमारी रहेगी, वे लोग इन लोगों की नीयत खराब देखने या भागने का इरादा मालूम होने पर पीछे से तोप मार-कर इन सभी की सफाई कर डालेंगे। ऐसा खौफ रहने से ये लोग एक दफा तो खूब लड़ जायेंगे, मुफ्त मारे जाने से लड़कर मरना बेहतर समझेंगे।’’ इस राय को महाराज ने बहुत पसन्द किया और दिल में कुमार की अक्ल की तारीफ करने लगे।

जब महाराज फिरे तो कुमार ने अर्ज किया, ‘‘मेरा जी शिकार खेलने को चाहता है, अगर इजाजत हो तो जाऊं ? महाराज ने कहा, ‘‘अच्छा, दूर मत जाना और दिन रहते जल्दी लौट आना।’’ यह कहकर हाथी बैठवाया। कुमार उतर पड़े और घोड़े पर सवार हुए। महाराज का इशारा पा दीवान हरदयालसिंह ने सौ सवार साथ कर दिये। कुमार शिकार के लिए रवाना हुए। थोड़ी देर बाद एक घने जंगल में पहुंचकर दो सांभर तीर से मार फिर और शिकार ढूंढ़ने लगे। इतने में तेजसिंह भी पहुंचे कुमार से पूछा, ‘‘क्या सब इन्तजाम हो चुका जो तुम यहाँ चले आये ?’’ तेजसिंह ने कहा, ‘‘क्या आज ही हो जायेगा ? कुछ आज हुआ कुछ कल दुरुस्त हो जायेगा। इस वक्त मेरे जी में आया कि चलें जरा उस तहखाने की सैर कर आवें जिसमें अहमद को कैद किया है, इसलिए आपसे पूछने आया हूं कि अगर इरादा हो तो आप भी चलिए।’’

‘‘हाँ, मैं भी चलूंगा।’’ कहकर कुमार ने उस तरफ घोड़ा फेरा। तेजसिंह भी घोड़े के साथ रवाना हुए। बाकी सभी को हुक्म दिया कि वापस जाएं और दोनों सांभरों का जो शिकार किये हैं, उठवा ले जायें। थोड़ी देर में कुमार और तेजसिंह तहखाने के पास पहुंचे और अन्दर घुसे। जब अंधेरा निकल गया और रोशनी आई तो सामने एक दरवाजा दिखाई देने लगा। कुमार घोड़े से उतर पड़े। अब तेजसिंह ने कुमार से पूछा, ‘‘भला यह कहिए कि आप यह दरवाजा खोल भी सकते हैं कि नहीं ?’’ कुमार ने कहा, ‘‘क्यों नहीं, इसमें क्या कारीगरी है ?’’ यह कह झट आगे बढ़ शेर के मुंह से जुबान बाहर निकाल ली, दरवाजा खुल गया। तेजसिंह ने कहा, ‘‘याद तो है !’’ कुमार ने कहा, ‘‘क्या मैं भूलने वाला हूं।’’ दोनों अन्दर गये और सैर करते-करते चश्में के किनारे पहुंचे। देखा कि अहमद और भगवानदास एक चट्टान पर बैठे बातें कर रहे हैं, पैर में बेड़ी पड़ी है। कुमार को देख दोनों उठ खड़े हुए, झुककर सलाम किया और बोले, ‘‘अब तो हम लोगों का कसूर माफ होना चाहिए।’’ कुमार ने कहा, ‘‘हाँ थोड़े रोज और सब्र करो।’’
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote