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Originally Posted by soni pushpa
लबों पर आ गए अल्फ़ाज़ दरिया की मौजें देखकर
ख़याल थे विशाल समंदर की गहराइयों की तरह
ऐसा लगा कि पहुँच गए हम अगले जनम तक
और लम्बी गुफ्तगू करते रहे हम आपसे लगाव में
जैसे लहरें बातें करते आईं हैं किनारों से आज तक
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निश्छल मन संग हम साथ रहेंगे जनमो जनम तक
थके हारे मन को दी शांति की कुछ सांसे इस स्वप्न ने
काश मिल जाये अगला जन्म हम साथ पायें आपका
सदा एक हो कर हम रहें- क़यामत से क़यामत तकसाथिया
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बहुत खूबसूरत कल्पना. समुद्र की लहरों को ताकते ताकते अगले जन्म तक की यात्रा करना तथा वहां अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण होते हुए देखना अद्वितीय है. बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.