Re: उल्लुं शरणं गच्छामि…उल्लू की खिदमत में खड&
जिसकी रीढ़ की हड्डी नेता के सामने ऐसी हो जाए,जैसे धूप में कुल्फी, उतनी ही खासियत होती है एक अधिकारी के कुल की। वाओ..शक्ल कौए की, और कंपनी बलबुल की। आज राजनीति में उलूकत्व और कौअत्व की क्वालिटी में एक साझा समझ कायम हो जाती है तो सरकार बड़े आराम से चलती है,वरना फिर सारी जनता की ही गलती है। ज़रा सोचिए। आखिर दिन-रात उल्लू और कौए लाल बत्तियों की गाड़ी में किसके भले के लिए दौड़ रहे हैं। ये वी.आई.पी. गाड़ियां,नाना प्रकार की दाढ़ियां और विदेशी पर्फ्यूम से महकती साड़ियां सभी चिंतित हैं कि कैसे भी बेचारी जमता का भला हो। अभी-अभी एक कागनाथ जरूरी फाइल और फाइलवाली के साथ उल्लूप्रसाद की दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचे हैं। फाइळ झपटकर उल्लूप्रसादजी ने गोपनीय विमर्श के लिए फाइलवाली को कैबिन में बुला लिया है। दोनों स्पर्श और विमर्श में डूब रहे हैं। बाहर बैठे कागनाथजी रफ्ता-रफ्ता ऊब रहे हैं। अचानक उनके दिमाग में घुसपैठ की एक बात ने, कि उल्लू प्रसाद क्यों सक्रिय होते हैं सिर्फ रात में। दिन में तो बेचारे उल्लू प्रसाद सिर्फ चुनाव के दिनों में ही जगाए जाते हैं और इसके लिए इनके चमचे क्षेत्रियाता की ढोलक पर जातिवाद का कोरस गाते हैं। आजकल उलूकराज उर्फ उल्लू प्रसाद का ही कद ग्रेट है क्योंकि राजनैतिक जीव-जंतुओं में सबसे बड़ा इनका ही पेट है। पेट क्या है पूरा इंडिया गेट है। सामान्य दिनों में (चुनाव को छोड़कर) उल्लू प्रसाद दिन
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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