26-05-2014, 03:07 PM
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#19
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
इश्क मजाज़ी से इश्क हक़ीकीकी ओर जाना! कैसा अनुभव होता होगा वह, मैं नहीं जानता लेकिन यह ज़रूर जानता हूँ किकहीं कुछ ऐसा होता है किसी ख़ास के प्रति कि उसके होने और उसके न होने से ही फ़र्क़पड़ता है ज़िन्दगी जीने में। कि कुछ करना है उसके लिए सबसे ज़रूरी काम बन जाता है किकहीं कुछ छूट जाता है उसके ग़ैर-हाज़िरी में। ऐसी ही एक प्रणय-गाथा तैरती हुई महसूसहोती है माण्डू में। सदियों पहले हो चुकी बाज बहादुर और रूपमती की प्रेम-गाथा।माण्डू के लोक-गीतों और लोक-कथाओं में, माण्डू से गुज़रती हुई नर्मदा के पानी में, माण्डू के पेड़- पौधों में और माण्डू में कुछ खड़ी और कुछ ध्वस्त हो चुकी या हो रहीइमारतों में। वस्तुत: इसी प्रणय-गाथा को उन हवाओं में महसूस करने, उन्हें पकड़ने केलिए ही हमने बनाया था माण्डू जाने का कार्यक्रम।
कुछ साल पहले रेडियो के लिए एकनाटक तैयार किया था मैंने। तब तक नहीं देखा था मैंने माण्डू और ना हीं नर्मदा का दूरसे दिखता वह बहाव जो रूपमती महल के पिछवाड़े से होकर निकल जाता है। बस सिर्फ़ अपनीकल्पना के सहारे भरे थे रंग मैंने उस नाटक में बहती नदी में और वहाँ घूमते हुएमहसूस किया था रूपमती और बाज बहादुर को। नाटक में ही सुना था दोनों का संगीत औरडूबा रहा था उस संगीत की स्वर-लहरियों में। या बहुत साल पहले 1957 में बनी देखी थीएक फ़िल्म ‘रानी रूपमती’। रूपमती थी उसमें निरूपा राय और बाज बहादुर था भारत भूषण।रूपमती का वह चेहरा जो गा रहा था यह गीत –‘आ लौट के आ जा मेरे मीत, तुझे मेरे गीतबुलाते हैं। मेरा सूना पड़ा रे संगीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं’। आज भी कई बार मेंगूँजता रहता है यह गीत लेकिन माण्डू में आकर ही इस गीत के मर्म को पकड़ पा रहा था।रूपमती की वियोग- पीड़ा बहुत घनी होकर कहीं मेरे अंदर उतर रही थी।
^ फिल्म रानी रूपमती के पोस्टर
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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