Re: सफलता के सूत्र :: देवराज के साथ
स्वस्थ आकांक्षाएं ही प्रेरणा की केन्द्र बिन्दु हैं। आगे बढ़ने- ऊँचा उठने- विकास की ओर निरन्तर अग्रसर होने की आकाँक्षा न उठी होती तो मनुष्य आदिम अवस्था में ही पड़ा रहता। आज की प्रगतिशील स्थिति में पहुँच पाना सम्भव न हो पाता। आकाँक्षाओं की प्रेरणा से ही पुरुषार्थ को गतिशील होने का अवसर मिला तथा विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। मनःशास्त्री कहते हैं कि मनुष्य की दृश्यमान हलचलों का कारण आकाँक्षाएं हैं। प्रतिभा, धन, प्रतिष्ठा अथवा श्रेय की आकाँक्षा के इर्द-गिर्द ही संसार की गति है। जीवन से वे तिरोहित हो जायं तो कुछ शेष बचता नहीं। निष्क्रिय और निचेष्ट जीवन का अभिशाप लद जाता है। मानव समाज का गहन अध्ययन करने वाले मनोविज्ञानी कहते हैं कि जिस समाज अथवा राष्ट्र की आकांक्षाएं जितनी प्रबल होंगी, भौतिक दृष्टि से वे उतने ही सम्पन्न होंगे।
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .
तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...
तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..
एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,
बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..
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