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Old 22-11-2010, 05:41 PM   #12
ABHAY
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Post Re: विभिन्न ब्रतकथा,आरती,चालीसा

शनिदेव
शनैश्चर की शरीर-कान्ति इन्द्रनीलमणि के समान है। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गीध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। शनि भगवान्* सूर्य तथा संज्ञा (प्रजापति की पुत्री) के पुत्र हैं। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। यह एक-एक राशि में तीस-तीस महीने रहते हैं। यह मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा १९ वर्ष की होती है। इनका प्रभाव एक राशि पर ढ़ाई वर्ष और साढ़े साती के रूप में लंबी अवधि तक भोगना पढ़ता है। शनिदेव भगवान शिव के अत्यन्त भगत है।

शनिदेव का रंग काला क्यो हैं, इस बारे में एक कथा प्रचलित है, जब शनिदेव माता के गर्भ में थे, तब शिव भक्तिनी माता ने घोर तपस्या की, धूप-गर्मी की तपन में शनि का रंग काला हो गया। लेकिन मां के इसी तप ने उन्हे आपार शक्ति दी।

शनिदेव की गति अन्य सभी ग्रहों से मंद होने का कारण इनका लंगड़ाकर चलना है। वे लंगड़ाकर क्यों चलते हैं, इसके संबंध में सूर्यतंत्र में एक कथा है - एक बार सूर्य देव का तेज सहन न कर पाने की वजह से संज्ञा देवी ने अपने शरीर से अपने जैसी ही एक प्रतिमूर्ति तैयार की औेर उसका नाम स्वर्णा रखा। उसे आज्ञा दी कि तुम मेरी अनुपस्थिति में मेरी सारी संतानों की देखरेख करते हुए सूर्य देव की सेवा करो और पत्नी सुख भोगो। ये आदेश देकर वह अपने पिता के घर चली गई। स्वर्णा ने भी अपने आप को इस तरह ढ़ाला कि सूर्य देव भी यह रहस्य न जान सके। इस बीच सूर्य देव से स्वर्णा को पांच पुत्र और दो पुत्रियां हुई। स्वर्णा अपने बच्चों पर अधिक और संज्ञा की संतानों पर कम ध्यान देने लगी।
एक दिन संज्ञा के पुत्र शनि को तेज भूख लगी, तो उसने स्वर्णा से भोजन मांगा। तब स्वर्णा ने कहा कि अभी ठहरो, पहले मैं भगवान्* का भोग लगा लूं और तुम्हारे छोटे भाई - बहनों को खिला दूं, फिर तुम्हें भोजन दूंगी। यह सुनकर शनि को क्रोध आ गया और उन्होंने माता को मारने के लिए अपना पैर उठाया, तो स्वर्णा ने शनि को श्राप दिया कि तेरा पांव अभी टूट जाए। माता का श्राप सुनकर शनिदेव डरकर अपने पिता के पास गए और सारा किस्सा कह सुनाया। सूर्यदेव तुरन्त समझ गए कि कोई भी माता अपने पुत्र को इस तरह का शाप नही दे सकती। इसीलिए उनके साथ अपनी पत्नी नही कोई और हैं। सूर्य देव ने क्रोध में आकर पूछा कि बताओ तुम कौन हो, सूर्य का तेज देखकर स्वर्णा घबरा गई और सारी सच्चाई उन्हे बता दी। तब सूर्यदेव नें शनि को समझाया कि स्वर्णा तुमारी माता नही हैं, लेकिन मां समान हैं। इसीलिए उनका दिया शाप व्यर्थ तो नही होगा, परन्तु यह इतना कठोर नही होगा कि टांग पूरी तरह से अलग हो जाए। हां, तुम आजीवन एक पाँव से लंगडाकर चलते रहोगे।
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