Re: डार्क सेंट की पाठशाला
ईश्वर से कहो
बतायो नाम का एक फकीर हुआ था। एक बार राह चलते हुए उसके पांव में फांस पड़ गई। तब वह जोर से चीखने लगा। रास्ते में इधर-उधर लोग खड़े थे। वे फकीर की चिल्लाहट सुनकर उसके पास इकट्ठे हो गए। उन्होंने फकीर से पूछा कि क्या हो गया है आपको? तो फकीर ने अपना पांव उनके सामने फैला दिया और कहा कि मेरे पांव में कुछ लग गया है। भीड़ में से एक व्यक्ति नीचे झुका। उसने देखा कि फकीर के पांव में फांस चुभी हुई है। उस व्यक्ति ने फकीर के पांव में लगी फांस को निकाल दिया। पास में ही एक दूसरा व्यक्ति जो खड़ा था। उसने देखा कि पैर में छोटी सी ही फांस लगी थी, लेकिन यह संत हैं और इस मामूली फांस के कारण इतनी जोर से चीख रहे हैं। आखिर इसका कारण क्या है? उससे रहा नहीं गया। उसने फकीर से पूछा - इतनी सी बात पर इतनी जोर से क्यों चीखे? बतायो ने कहा कि देखो - वह जो ऊपर वाला है, इसका स्वभाव विचित्र है। फकीर का संकेत ईश्वर से था। उन्होंने कहा, आदमी ज्यों-ज्यों सहता जाता है, ईश्वर उसे और अधिक कष्ट देता जाता है। मैं यदि यह तकलीफ सह लूंगा, तो संभव है कि कल वह मेरे पांव में भाला चुभो दे। बतायो के कहने का मतलब यह था कि कष्ट से परेशान होकर मैं नहीं चीख रहा हूं। मैं सजग हूं। जो कुछ भी घटित हो रहा है, वह अनजाने में घटित नहीं हो रहा है। एक फांस भी यदि मेरे पांव में लगती है, तो उसका मुझे अनुभव होता है। हम यह नहीं मानते कि ईश्वर किसी को कष्ट देता है। और व्यक्ति सहन कर लेता है, तो फिर उसे दोगुना-चौगुना कष्ट देता है। दुखों का सीधा सम्बंध व्यक्ति के अपने कर्म से है, लेकिन यह निश्चित है कि जो अपने जीवन के हर क्षण के प्रति जागरूक रहता है, उसके कष्ट स्वयं कम हो जाते हैं। जितने भी कष्ट आते हैं, हमारी जागरूकता की कमी से आते हैं। मनुष्य जहां-जहां प्रमाद में जाता है, वहां - वहां उसकी कष्टानुभूति तीव्र हो जाती है। प्रमाद जितना कम होता है और जागरूकता बढ़ती है, कष्ट की उपस्थिति उतनी कम हो जाती है। इसलिए यह आवश्यक है कि कोई भी मनुष्य विशिष्टता के क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले अपने जीवन की छोटी-छोटी बातों के प्रति जागरूक बने।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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