View Single Post
Old 17-03-2014, 12:47 PM   #13
bindujain
VIP Member
 
bindujain's Avatar
 
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144
bindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond repute
Default Re: लघुकथाएँ

गैरज़रूरी


‘‘क्यों सता रखा है उसे तुमने ?’’ बेटे ने माँ से नई-नवेली पत्नी के विषय में आक्रोश से भरकर कहा।
अत्यंत संवेदनशील वह नारी जो चींटी भी नहीं मार सकती थी किसी का दिल दुखाने सताने की तो दूर की बात। हैरत से पहले तो बेटे को देखती रही। फिर कुछ न बोल अपने भीतर उतरती चली गई।
बहू कुछ रोज के लिए मायके गई थी। अब घर में सिर्फ माँ और बेटा ही थे। जो माँ बेटे की पीड़ा की कल्पना मात्र से काँपने लगती। हर समय अपनी ममता का सागर उस पर लुटाती। न जाने किस सूत्र से बेटे के अंदर का सब कुछ जान लेने वाली माँ अब जैसे राख हो गई थी। बेटे के एक वाक्य ने उस पर कहर ढा दिया था। अब बेटे की उपस्थिति को नकारती-छुपाती..अपने ऊपर विश्वास मानो खो चुकी थी। उसके भीतर जैसे सब चूक गया था। वह बीमार रहने लगी।
जिसकी किसी को ज़रूरत नहीं उसका मर जाना ही अच्छा माँ के हृदय से आवाज आती रही और एक दिन वह सचमुच मर गई।


__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
bindujain is offline   Reply With Quote