Re: राहुल गाँधी के हसीन सपने
भारत के युवराज, भावी प्रधानमन्त्री, ४१ साल के युवा, राहुल गाँधी को राजनीति में आये ८ साल हो गए हैं लेकिन शायद उनके राजनैतिक जीवन का यह बरस कुछ अच्छा घटित होता हुआ नहीं दिख रहा है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का चौथा स्थान लगभग तय ही है. लगता है दलितों के घर में खाने, बुनकरों को हजारो करोड़ देने का, अल्पशंक्षक वर्ग को ४.५ प्रतिशत कोटा देने का, कुछ फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है. वैसे इससे राहुल गाँधी को कोई खास फर्क तो पड़ता नहीं है क्योंकि इससे पहले भी बिहार के चुनाव में उन्होंने और उनकी पार्टी ने काफी हो-हल्ला मचाया था और फिर अंत में २ सीट के साथ दिल्ली वापसी हुई. कांग्रेस की यह एक परंपरा रही है की किसी भी चुनाव में अगर सफलता मिलती है तो उसका श्रेय हमेशा गाँधी परिवार के सदस्य के खाते में भी जाता है और अगर असफलता मिलती है तो कोई ना कोई कारण या बलि का बकरा खोज ही लिया जाता है.
पिछले चुनाव यानी २००७ में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के २२ सीट थे जो की इस बार बढ़ कर ४० से ५० होने के उम्मीद है और फिर कांग्रेसी यह कह कर बच निकलेंगे की देखिये राहुल जी का कमाल इस बार सीट दुगुने से भी ज्यादा मिले. लेकिन सवाल यह नहीं है, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और राहुल गाँधी ने काफी मेहनत से काम किया है. कांग्रेस यहाँ किंग मेकर बनना चाहती है ताकि वो जिसे यहाँ किंग बनाए वो पार्टी इसके बदले उनको दिल्ली में समर्थन दे. वैसे ६ तारीख को यह तय हो जाएगा की चुनाव के नतीजे से कांग्रेस को नुकसान होता है या फायदा. चुनाव के बाद क्या समीकरण बनेगा वो तो अगले ४८ घंटे में तय हो ही जाएगा.
हम लोग बात कर रहे थे कांग्रेस और राहुल गाँधी के चुनाव प्रचार और मीडिया hype की. कांग्रेस ने हर बार की तरह इस बार भी जबरदस्त तरीके से वोट बैंक की राजनीति की और नजदीक के फायदे के लिए अजीब अजीब फैसले लिए. पहला फैसला, राहुल गाँधी द्वारा उत्तर प्रदेश के चुनाव को निजी जंग के तौर पर लेना था. सबको पता है grass root पर कांग्रेस के पास कार्यकर्ता और अच्छे लोग ही नहीं है, परिवार वाद के कारण कांग्रेस का कैडर सिस्टम बिलकुल ख़त्म होता जा रहा है. उनके पास उत्तर प्रदेश में अच्छे नेता ही नहीं हैं. फिर भी इस चुनाव में २०० सीट का दावा करना काफी हास्याद्पद था.
दूसरी सबसे बड़ी गलती यह थी की अल्पशंक्षक वर्ग को ४.५ प्रतिशत कोटा देने का फैसला चुनाव की घोषणा के ठीक २ दिन पहले करना. इस फैसले के पीछे का धोखा बड़ा ही दिलचस्ब था. मंडल प्लान के मुताबिक़ अल्पशंक्षक वर्ग के पिछड़े लोगो को २७ में पहले से ही कोटा था. इस नियम के बाद यह हो जाता की २७ का ४.५ प्रतिशत यानी १०० में १.२ प्रतिशत कोटा वो भी अल्पशंक्षक वर्ग (मुस्लिम, सिख, इसाई, बौध आदि) के लिए अलग से रिज़र्व हो जाता. मज़े के बाद है की इतनी सीट तो ऐसे ही अल्पशंक्षक वर्ग के पिछड़े को मिल जाती है.
और इस फैसले को राहुल और कांग्रेस ने यह कह कर प्रोजेक्ट किया की मुस्लिमों को आरक्षण दे रहे हैं. जबकि असल में यह फैसला अल्पशंक्षक वर्ग के पिछड़े लोगो के लिए लिया गया था. बाद में और वोट पाने के लिए कांग्रेस ९ प्रतिशत का दावा करने लगी. यहाँ तक की इलेक्शन कमीशन से भी पंगे ले बैठी. और एक गलती कांग्रेस द्वारा यह हुई की उसके नेता यह कहने लगे की या तो उनको सरकार बनेगी नहीं तो प्रेसिडेंट रुल होगा. इससे भी जनता का पार्टी के प्रति रुझान घटा.
इन सब अटकलों का फैसला तो ६ को हो ही जाएगा. देखते हैं राहुल गाँधी के हसीन सपने पुरे होते हैं की नहीं. वैसे सबको पता ही है राहुल बाबा का हसीन सपना दिल्ली की गद्दी ही है. लेकिन शायद वो भूल गए है की अभी २०१२ चल रहा है और दिल्ली का रास्ता लखनऊ, पटना, गांधीनगर, मुंबई या चेन्नई से होकर गुजरता है. वो दिन बीत गए जब किसी गाँधी ने नारा दे दिया की गरीबी हटाओ और सभी गरीबो के वोट बटोर लिए. अब केवल बातो से काम नहीं चलेगा कुछ काम करके भी दिखाना होगा.
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