दिया संगीत को नया आयाम
(चित्र में देखिए पंडितजी को हैरीसन दम्पती के साथ)
हर भारतीय शास्त्रीय वाद्य यंत्र की तरह सितार को भी शुरुआती दौर में उपेक्षा की नजर देखा जाता था। यह इतना लोकप्रिया नहीं था, जितना कि आज है। वैश्विक स्तर पर सितार की धुनों पर सभी को झूमने पर मजबूर करने वाले पं. रविशंकर की साधना का ही कमाल था कि इस वाद्य यंत्र को वैश्विक पहचान मिली। उन्होंने सितार बजाने की परम्परा को नया आयाम दिया। इससे विदेशियों में भी भारतीय संगीत के प्रति रुचि बढ़ी। इसका लाभ उन्हें मिला और वह आगे बढ़ते गए। पं. रविशंकर ने दिल्ली आकाशवाणी के लिए आर्केस्ट्रा पार्टी बनाई थी। कुछ वर्षों तक इसके जरिए उन्होंने अलग-अलग रागों को बड़े ही अनोखे रूप में लोगों तक पहुंचाया। वह भारत के पहले कलाकार हैं, जिन्हें पश्चिमी फिल्मों में संगीत देने के प्रस्ताव मिले। सितार को इस बुलंदी पर पहुंचाने के लिए पं. रविशंकर ने कड़ा संघर्ष किया है। पश्चिमी देशों में उन्हें जो पहचान मिली, उसमें पश्चिमी संगीतज्ञ जॉर्ज हैरिसन का सहयोग जरूर रहा। असल में वर्ष 1966 में संगीत ग्रुप बीटल्स के सदस्य जॉर्ज हैरिसन पं. रविशंकर के शिष्य बने, उन्होंने कई नए राग बनाए। हैरिसन ने ही उन्हें ‘विश्व संगीत के पितामह’ की उपाधि दी थी। 92 वर्ष की उम्र में 12 दिसम्बर, 2012 की अलसुबह संगीत का यह वैश्विक सितारा अपनी सितार को छोड़कर हमेशा के लिए मौन हो गया।