24-10-2015, 07:35 PM
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Re: भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जाद&a
भारतीय क्रिकेट में स्पिन के जादूगर
चौथा दौर
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यह वह दौर है जो 91 से शुरू हुआ। इसी में कुंबले का आगाज हुआ जिन्हे कुछ समय के तक वेंकटपति राजू और राजेश चौहन का साथ मिला उस समय ऐसा लगने लगा कि भारतीय फिरकी का सुनहरा दौर फिर शुरू हो गया है लेकिन यह मंगेरीलाल के सपने की तरह जल्द ही टूट गया। बाद में कुंबले को सुनील जोशी, हरभजन और मुरली कातिर्क साथ मिला जिसमें हरभजन के अलावा कोई भी विश्वस्तरीय गेंदबाज साबित नहीं हो सका। लेकिन उन्हें भी एक साथ गेंदबाजी करने का मौका बहुत कम मिला है। अब तो कुंबले सन्यास ले चुके है, तो ये देखना बङा दिलचस्प रहेगा की हरभजन का साथ कौन निभायेगा अमित मिश्रा या प्रज्ञान ओझा मगर आज के दौर के क्रिकेट हम नजर दौड़ाते तो देखते हैं कि अंतिम ग्यारह में मुश्किल से ही दो स्पिनरों को जगह मिलती है टीम तीन तेज गेंदबाजों, एक स्पिनर और कामचलाउ गेंदबाजों के साथ उतरती है। इससे भी स्पिन गेंदबाजी पर असर पड़ रहा है। क्रिकेट का इतिहास गवाह है कि स्पिन जोंड़ीदार के साथ ही हिट हुआ है। बेदी – प्रसन्ना, लेकर – लाक , बिले ओ टिले – क्लेरी ग्रिमेंट , कादिर – अहमद , एंबुरी – हेमेंग्स , केंबले – राजू ये जोड़ीयाँ अपने अपने समय बल्लबाजों पर कहर बरपाती थी। ऐसे में टीम के अकेले स्पिन गेंदबाजों पर दबाव कहीं अधिक होता जा रहा है क्रिकेट जिस तरह पावर गेम होता जा रहा है उसमें बल्लेबाज भी स्पिन गेंदबाजों पर ज्यादा से ज्यादा रन जुटाने में लगे रहते है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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