Re: कुतुबनुमा
एक फैसले की ज़द में अनेक चेहरे
गुजरात की राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कांग्रेसी खेमे की ओर से आनन-फानन में अनेक पारंपरिक प्रतिक्रियाएं आ गईं, लेकिन तब तक शायद उन्हें यह पता नहीं था कि इस निर्णय ने भले ही मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाए हों, लेकिन खुद उनका दामन कुछ ज्यादा ही दागदार होकर उभरा है। उच्चतम न्यायालय ने लोकायुक्त के तौर पर न्यायाधीश (सेवानिवृत) आर.ए. मेहता की नियुक्ति को बरकरार रखा और उसके पीछे कारण यह बताया कि ‘इस मामले के तथ्यों से गुजरात राज्य की चिंताजनक स्थिति का पता चलता है, जहां लोकायुक्त का पद नौ साल से भी अधिक समय से रिक्त था।’ साथ ही राज्यपाल कमला बेनीवाल की भूमिका पर भी यह कहते हुए अंगुली उठाई, राज्य सरकार से परामर्श के बगैर ही इस पद पर नियुक्ति के संबंध में राज्यपाल ने ‘अपनी भूमिका का गलत आकलन’ किया। न्यायाधीशों ने कहा, ‘वर्तमान राज्यपाल ने अपनी भूमिका का गलत आकलन किया और उनकी दलील थी कि कानून के तहत लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में मंत्री परिषद की कोई भूमिका नहीं है और इसलिए वह गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता से परामर्श करके नियुक्ति कर सकती हैं। इस तरह का रवैया हमारे संविधान में परिकल्पित लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप नही है।’ न्यायाधीशों ने कहा, ‘राज्यपाल ने कानूनी राय के लिए अटार्नी जनरल से परामर्श किया और मंत्री परिषद को विश्वास में लिए बगैर ही उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से सीधे पत्राचार किया। इस संबंध में उन्हें यह गलत सलाह दी गई थी कि वह राज्य के मुखिया के रूप में नहीं, बल्कि सांविधिक प्राधिकारी के रूप में काम कर सकती हैं।’ न्यायाधीशों ने कहा कि इस मामले में तथ्यों से स्पष्ट है कि परामर्श की प्रक्रिया पूरी हो गई थी, क्योंकि मुख्यमंत्री को मुख्य न्यायाधीश के सारे पत्र मिल गए थे और ऐसी स्थिति में नियुक्ति को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता है। साफ़ है कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका को गलत माना, लेकिन नियुक्ति इसलिए रद्द नहीं की कि राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति में रूचि नहीं दिखाई गई। साफ़ है कि कांग्रेस के लिए यह खुशी मनाने का अवसर तो कतई नही है, वह भी उस स्थिति में जब राजस्थान जैसे उसके द्वारा शासित अनेक राज्यों में भी अब तक लोकायुक्त नियुक्त नहीं किए गए हैं, जबकि वहां दोबारा चुनाव सर पर हैं यानी वहां कांग्रेस लोकायुक्त के बिना लगभग पूरा शासन काल गुज़ार चुकी है। (गौरतलब यह भी है कि गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल राजस्थान की ही हैं और भाजपा के नेता सौमय्या दो बार राजधानी जयपुर जाकर उन पर भूमि खरीद में धांधली के आरोप लगा चुके हैं और यह दावा कर चुके हैं कि लोकायुक्त नहीं होने के कारण ही मामले की जांच की मांग रद्दी की टोकरी के हवाले कर दी गई है।) ऎसी स्थिति में देर सवेर उसके भी कुछ मुख्यमंत्री ऎसी ही स्थिति में फंस सकते हैं, तब शायद कांग्रेस का मासूम जवाब उसकी परंपरा के अनुसार यह होगा- हम अदालतों का सम्मान करते हैं, अतः उनके निर्णयों पर कोई टिप्पणी नहीं करते।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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