Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
विजय किताबों की शेल्फ के सहारे एक कोने में खड़े होकर दोनों हाथ किताबों की शेल्फ पर टिका कर गाना शुरू किया. ‘जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्*यार को प्*यार मिला… हमने तो जब कलियां मांगीं कांटों का हार मिला… खु़शियों की मंजिल ढूंढी तो ग़म की गर्द मिली… चाहत के नग्में चाहे तो आहें सर्द मिली… दिल के बोझ को दूना कर गया जो ग़मख्*़वार मिला… बिछड़ गया हर साथी देकर पल दो पल का साथ… किसको फ़ुर्सत है जो थामे दीवानों का हाथ… हमको अपना साया तक अक्सर बेज़ार मिला… हमने तो जब कलियां मांगी…’. मीना विजय के इस गीत को बर्दाश्त न कर सकी और कमरे को कोने में रोने लगी. वहीं दूसरी तरफ मिस्टर घोष सब देख रहे हैं. विजय गा रहा है, ‘इसको ही जीना कहते हैं तो यूं ही जी लेंगे… उफ़ न करेंगे, लब सी लेंगे, आंसू पी लेंगे… ग़म से अब घबराना कैसा, ग़म सौ बार मिला…’.
विजय की इतनी बेइज्जती के बाद मीना नहीं चाहती थी कि विजय यहां नौकरी करे. मीना विजय को यह समझा रही थी कि मिस्टर घोष ने देख लिया और समझा कि मीना-विजय के बीच पुराने प्यार की कोई बात चल रही है. मिस्टर घोष ने विजय को नौकरी से निकाल दिया.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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