Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
ताहा नसीम:
पा बस्ता-ए-ज़ंजीर पे रहमत हो तेरी
ज़िन्दानी-ए-तक़दीर पे रहमत हो तेरी (कैद)
मयखाने सिम्त उठते क़दमों पे करम
इस दस्ते-कदह गीर पे रहमत हो तेरी. (प्याला)
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प्रोफ़ेसर वाकिफ़:
इंकार का मारा हुआ रोता ही रहेगा
ये चर्ख ख़ुशी दहर की खोता ही रहेगा
हाँ छोड़ बखेड़ों को मेरा जाम तो भर
दुनियां में जो होता है वो होता ही रहेगा.
दुनिया को ये फिरदौस का हैकर क्या है
खबर साक़ी दे जन्नत-ओ-कौसर क्या है
यां भी वही जन्नत में वही साक़ी-ओ-मय
कौनीन में उन दोनों से बेहतर क्या है.
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