Re: ~!!गोनू झा!!~
गोनूक ढ़ाकी
जहिना गोनूक नाम तहिना हुनक आ हुनक भायक बीच भेल बँटवारा । गोनूक बढ़ैत प्रतिष्ठा सँ हुनक भाय बड़ जरथि आ सगरो दुष्प्रचार करथि जे भाय हमरा संग अन्याय करैत छथि । बात बढ़ैत-बढ़ैत बढ़ि गेल । लोक सभ सेहो एहि झगड़ा मे यदा-कदा घी ढारथि । ताहि द्वारे बात बढ़ि के भिन्न-भिनाउज धरि आबि गेल । गोनू अपन भाय भोनूक ठीक सँ देखभालो करथि आ हरदम हुनकर बर-बेगरता मे ठाढ़ रहथि । ओ भोनू के बहुत बुझेबाक प्रयास केलनि जे ओ लोक के कहल मे नहि आबथि आ शांत रहथि, लोक सभ हुनका दुनू भायक बीच मे दरारि फारय चाहैत अछि आदि । तथापि भोनू नहि मानलथि । हारि के गोनू भिन्न-भिनाउज पर राजी भेलाह ।
आब गौंआँ सभ अलगे चालि देबय लागल । ओ भोनू के बुझेलक जे गोनू के कोन कमी छनि । हुनका तँ रोज राज-दरबार सँ किछु ने किछु भेटिते रहैत छनि । तें तों कहून जे घर मे जे धान अछि से सभटा हमरा दऽ दिअ । फेर भोनू पड़ि गेलाह गोनूक पाछू । गोनू तरे-तर सबटा भाँज-पता लगा लेलाह जे एहि काज मे के सभ सह दऽ रहल अछि आ ओ के अछि जे हमरा दुनू भाय मे भिन्न-भिनाउज हेबाक नौबत आनि देलक अछि । हुनका सभ के छ्केबाक लेल आ भाय के ठीक रस्ता पर अनबाक ले गोनू एकटा प्लान बनेलनि ।
भिन्न-भिनाउज पर ओ राजी तँ छलाहे, ओ गौंआँ सभक बैसार करेलनि । दुनू भाय के अलग करेबा मे जनिका सभक भूमिका छलनि तिनका सभ के गोनू विशेष रूप सँ पंचैती मे बजेलनि आ तें जेना की आशा छल, पंच लोकनि ई निर्णय देलनि जे अहाँ घर मे उपलब्ध सभटा धान भोनू के दऽ दियौ, कारण अहाँ के कोन कमी अछि, रोज दरबार सँ किछु ने किछु भेटिते रहैत अछि । पहिने बैसार मे ओ अनुनय-विनय केलनि जे बाप-दादाक अरजल खेत सँ जे किछु धान आदि भेल अछि, से आधा-आधा बँटेबाक चाही । परन्तु ओ पंच लोकनि जे भोनू के सनकबैत रहथिन से एहि पर राजी नहि भेलखिन आ जोर देलखिन जे सभटा धान भोनू के दऽ दियौ । गोनू के ई बात उचित नहि बुझेलनि जे सभटा धान भोनू के दऽ दियै आ हमरा काल्हिये सँ बेसाह लागय । आ तें गोनू प्रस्ताव देलनि जे हमरा आँगन मे राखल ढ़ाकी सँ एक ढ़ाकी धान दऽ देल जाय आ शेष धान भोनू राखथि । भोनू के भड़कावय वला पंच एहि बात पर राजी भऽ गेलाह ।
|