Re: ~!!गोनू झा!!~
फेर की छल । लोकक सोझे मे ढ़ाकी मे धान देब शुरू कयल गेल । ढ़ाकी मे धान देल जाइक आ पता नहि ओ धान कतय चलि जाय । ढ़ाकी हरदम खालीक खाली । धान देनहार थाकि गेल परन्तु ढ़ाकी नहि भरल । लोक के आश्चर्य लगैक । अंत मे लोक सभ ढ़ाकी उठेलक तँ देखैत अछि ओकर नीचाँ मे बड़का टा खाधि । लोक सभ आश्चर्यचकित रहि गेल आ गोनू पर छल करबाक दोषारोपण करय लागल ।
गोनू बजलाह – आखिर अहाँ लोकनि भोनू के भड़काय के हमरा घर मे भिन्न-भिनाउज कराइये देल आ हमरा अपन पुरषाक अड़जल खेतक धान सँ सेहो वंचित करबाक बहुत प्रयास कयल । जँ हमचाहितौं तँ अहाँ सभक पंचैतीक मोताबिक आई एक ढ़ाकी धान लऽ सकैत छलहुँ, तथापि भोनूक कोनो हक के मारब हमर ध्येय नहि अछि ।
एतबा सुनितहि भोनू गोनूक पायर पर खसि पड़ल आ भाय सँ भिन्न हेबाक विचार के तिलांजलि दऽ देलक आ ताहि दिन सँ गोनूक ढाकी पूरा मिथिलांचल मे नामी भऽ गेल ।
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