Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
राकेश जी, आपका कवि रूप तो मुझे पता था, पर यह रूप मेरे लिए हीं नहीं शायद अन्य लोगों के लिए भी नया है। आज कुछ समय बाद यहाँ फ़ोरम पर आना हो सका है सो आज हीं आपका सुत्र देखा। बस एक दिन का समय दीजिए, उपन्यास पढ़ कर, कुछ आगे प्रतिक्रिया दुँगा।
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