Re: शतरंज के खिलाड़ी by प्रेमचंद
सवार - घर में नही, तो कहाँ है?
नौकर - यह मैं नही जानता। क्या काम है?
सवार - काम तुझे क्या बतालाऊँ? हुजूर से तलबी है - शायद फौज के लिए कुछ सिपाही माँगे गये है। जागीरदार है कि दिल्लगी? मोरचे पर जाना पड़ेगा तो आटे-दाल का भाव मालूम हो जायेगा।
नौकर - अच्छा तो जाइए, कह दिया जायेगा।
सवार - कहने की बात नही। कल मै खुद आऊँगा। साथ ले जाने का हुक्म हुआ है।
सवार चला गया। मीर साहब की आत्मा काँप उठी। मिर्जा जी से बोले - कहिए, जनाब, अब क्या होगा?
मिर्जा - बड़ी मुसीबत बै। कहीं मेरी भी तलबी न हो।
मीर - कम्बख्त कल आने को कह गया है।
मिर्जा - आफत है, और क्या! कहीं मोरचे पर जाना पड़ा तो बेमौत मरे।
मीर - बस, यही एक तदबीर है कि घर पर मिलें ही नही। कल से गोमती पर कहीं वीराने नें नक्शा जमें। वहाँ किसे खबर होगी? हजरत आकर लौट जायेंगे।
मिर्जा - वल्लाह, आपको खूब सूझी! इसके सिवा औऱ कोई तदबीर नही है।
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