Re: गंगा से कावेरी तक
उसेदीप्ति की याद आने लगती है। दीप्ति उसके पड़ोस की एक लड़की जिसे वह पिछलेपाँच-छ: वर्षों से जानता है। उसकी नीरा के साथ जब शादी हुई तो दीप्ति नेबड़ी खुशी-खुशी बधाई दी थी। और न जाने क्यों अचानक उसकी आँखों से आँसू निकलआए थे। तब तपन ने सोचा था कि यह किशोरावस्था का एक आकर्षण था उसके प्रति, एक सपना आज टूटा, दीप्ति अब निखर जाएगी। फिर जिंदगी के पाँच वर्ष यूँ ही बीत गएवह घरेलू परेशानियों में कुछ इतना उलझ गया कि दीप्ति की तरफ उसका ध्यान ही नहीं गया।
नीरा और उसके बीच अहं की एक दीवार खड़ी थी। कौन किसे फतह कर लेता है बस इसी कोशिश में गुजर गए पाँच वर्ष और उसका परिणाम था उसकी दो लड़कियाँ नटखट, चंचल, प्यारी-प्यारी। उन्हीं में उलझ गई थी तपन की जिंदगी। एक तो नौकरी कुछ ऐसी थी कि उसे फुरसत ही नहीं मिलती थी। और जब फुरसत मिली भी तो घर, जरूरतें, समस्याएं और उसका अपना लिखना-पढ़ना, तपन ने तमाम दूसरी चीजों की परवाह करना छोड़ दिया। बस यदा कदा नौकरी और घरेलू संबंधों को लेकर वह परेशान रहता।
दीप्ति बीच में एक-दो बार उसे मिली थी। शायद दीप्ति ने उसे भुला ही दियाथा। शादी के बाद शुरू के दिनों में वह इतना परेशान रहता था कि दीप्ति नेचाहा भी तो उसने ठीक से बात नहीं की। और दीप्ति ने भी कहीं-न-कहीं अपना आहतमन बदला लेने के लिए तैयार कर लिया। पर तपन एक वर्ष बीतते-न-बीतते उस माहौलसे दूर चला गया। उसने दूसरी जगह नौकरी कर ली । उसके बाद चार वर्षों में दीप्ति से कोई बात ही नहीं हुई। दीप्ति को वह अपनी कसौटी पर खरा भी नहीं पाता था। दीप्ति चंचल थी। घर से उसे काफी छूट थी जिसका फायदा वह उठाती थी। नीरा से जिस स्वतंत्रता को लेकर उसके मतभेद स्वतंत्रता थे उसी स्वतंत्रता की पक्षधर दीप्ति भी थी। महज रूमानी और दिखावे की स्वतंत्रता, जिम्मेदारी, कर्तव्य, ईमानदारी सब नदारद।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 18-06-2014 at 01:14 PM.
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