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Originally Posted by amit_tiwari
बन्धु मैंने मात्र राजनीति की बात नहीं कही है और ना ही मैंने कोई आन्दोलन खड़ा करने को कहा है | मैं बस अपने दैनिक जीवन में शुचिता की बात कर रहा हूँ | भाड़ में जाएँ नेता और चूल्हे में जाए अधिकारी पर कम से कम जन सामान्य को लाइन पर आये |
मैं किसी से अपेक्षा नहीं करता की अपना परिवार त्याग कर देश के लिए समाजसेवा करे | किन्तु जितना एक सामान्य नागरिक कर सकता है उतना तो करे! रोज ट्रैफिक नियमों का पालन करे, अपने दरवाज़े के सामने की सार्वजानिक संपत्ति का ध्यान रखे | ऐसी छोटी छोटी चीजें | क्या यह कुछ बड़ा त्याग है ? एक बार सोच के देखें मात्र इतने से ही कितना अंतर आ जायेगा |
रही बात मेरी तो मैं अपने जीवन में सामान्य रूप से जितना संभव हो सकता है उतने दायित्व निभा ही रहा हूँ| मैंने अपना व्यक्तिगत आयकर सर्वशुद्ध रूप से दिया है, मेरी गाड़ी में प्रदूषण का स्तर मानक के अनुरूप है, मैं सर्विस टैक्स भी देता हूँ और जो भी मुझ पर देय हों, हाल ही में विधिक कार्यवाहियों में जहां रिश्वत देकर मेरा कार्य जल्दी हो सकता था वहाँ मैंने १ मॉस अतिरिक्त लगाया है और राजनीतिक रूप से मैं लोक परित्राण का समर्थन करता हूँ और सक्रीय भी हूँ | इससे अधिक करने का अभिप्राय क्या पिछले सन्देश में था ?
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जनसेवा के लिए अपना परिवार त्याग करने की ज़रूरत नही होती.. अगर इस तरह से आज़ादी से पहले लोग सोचते तो शायद हम ghulaam ही रहते..
बस मैं यह कहना चाहता हू की आज का युवा देश के प्रति अपने कर्तव्य भूल गया है और बस पैसे कमाना ही उनका मकसद हो गया है..
छोटी छोटी चीज़ो से भारत जैसे बड़े देश में परिवर्तन नही आते और अगर हम ज़्यादा कुछ नही कर सकते तो हमे अपने वतन की बुराई करने का कोई हक़ नही है..
भारत तो हमारी माता है और माता कैसी भी हो हमेशा पुत्र के लिए और आदरणिय ही होती है.. और पुत्र को अपनी माता पर कभी शर्मिंदा नही होना चाहिए..