Re: इधर-उधर से
'फोटो कर्म अधिकारस्ते मा छपेषु कदाचन्'
लेखक- डॉ. सत्यनारायण गोयल 'छविरत्न'
मैं साहित्यिक व्यक्ति तो नहीं हूँ जीवन में कॉमर्शियल आर्ट का कार्यकर्ता रहा हूँ, जो कालांतर में धीरे-धीरे फोटोग्राफी का रूप ले गया। 1955 से लेकर 1959 के मध्य मैं सबसे पहले केंद्रीय हिंदी संस्थान के संपर्क में तब आया, जब मैं बेलनगंज स्थित आगरा टिन फैक्ट्री में आर्टिस्ट के रूप में काम करता था। वहाँ सरसों के तेल को भरने के लिए कनस्तर बनते व प्रिंट होते थे। सरसों का तेल आगरा से बंगाल एवं उड़ीसा प्रदेशों में अधिक निर्यात किया जाता था। कनस्तर के चारों ओर उन प्रदेशों की भाषा व लिपि में तेल से संबंधित प्रचार हेतु वाक्य लिखने होते थे, जो मैं नहीं लिख पाता था। मुझे ज्ञात हुआ कि आगरा में केंद्रीय हिंदी संस्थान के नाम से गाँधी नगर में एक विद्यालय चलता है। मैं ढूँढ़ता हुआ गाँधी नगर पहुँचा। वहाँ डॉ. विनय मोहन जी, निदेशक के दर्शन हुए। वहाँ बंगला व उड़िया के छात्र मिल गए। दोनों भाषाओं से मुझे बहुत योगदान प्राप्त हुआ। मेरी समस्या का निदान हो गया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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