Re: इधर-उधर से
'फोटो कर्म अधिकारस्ते मा छपेषु कदाचन्'
और फिर पुन: केंद्रीय हिंदी संस्थान से विधिवत फोटोग्राफी हेतु जुड़ गया, जो लगभग 1990 तक चला। मुझे अपने ऊपर तरस आ रहा है कि मैं देश और विदेश के महान विद्वानों के सम्पर्क में फोटोग्राफी हेतु तो आया, परंतु साहित्यिक रूचि होते हुए भी उनके भाषणों व साहित्यिक वार्ता के मध्य रहते हुए भी बहुत अधिक साहित्यिक लाभ न उठा पाया। कारण कि मेरा सारा ध्यान चिड़िया की आंख की भांति अपने मुख्य लक्ष्य फोटोग्राफी में ही लगा रहता था।
श्री वी. कृष्ण स्वामी अय्यंगार संस्था में अपने दायित्व बड़ी निष्ठा से निभाते थे और बड़ी चुटीली भाषा में बोलते थे। मुझे याद आता है कि वे बताते थे जैसे विद्यालय जहाँ विद्या का लय हो, विद्यार्थी वह जो विद्या की अर्थी निकाले। इस प्रकार के व्यंग्यात्मक भाषण में डॉ. अय्यंगार को सुनकर बड़ा आनंद आता था।
मुझे डॉ. वी. कृष्णास्वामी अय्यंगार जी की एक बात बहुत याद आती है। मैंने उनसे कहा था कि गीता में श्लोक है- 'कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचन्' - तो मैंने उनसे निवेदन किया था कि मैं प्रेस फोटोग्राफर हूँ, फोटो खींचने का अधिकारी हूँ। छापने का मेरा अधिकार नहीं है तो उन्होंने मुझे गीता वाली भाषा में बताया कि 'फोटो कर्म अधिकारस्ते मा छपेषु कदाचन्' - और यह मेरे जीवन का लक्ष्य बन गया और मुझे उससे बहुत शांति प्राप्त हुई।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 13-10-2014 at 11:01 PM.
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