Re: इधर-उधर से
सच्ची दौलत
आप सब उर्दू के प्रख्यात शायर मीर तक़ी मीर के नाम तथा शायरी से अवश्य परिचित होंगे. उन्होंने अपनी आत्मकथा “ज़िक्र-ए-मीर” में दर्ज अपनी वसीयत में निम्नलिखित पंक्तियाँ लिखी हैं जो ध्यान देने योग्य हैं. इनमें उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि उन्हें दुनिया के ऐश-ओ-आराम और धन-दौलत की कभी परवाह नहीं रही. उन्होंने लिखा है कि :--
"बेटा, हमारे पास दुनिया के धन-दौलत में से तो कोई चीज़ नहीं है जो आगे चलकर तुम्हारे काम आये, लेकिन हमारी सबसे बड़ी पूंजी, जिस पर हमें गर्व है, क़ानून-ए-ज़बान (भाषा के सिद्धान्त) है, जिस पर हमारा जीवन और मान निर्भर रहा, जिसने हमें अपमान के खड्डे में से निकाल कर प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया. इस दौलत के आगे हम विश्व की हुकूमत को भी तुच्छ समझते रहे. तुम को भी अपने तरके (पैतृक सम्पत्ति) में से यही दौलत देते हैं"
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 07-11-2014 at 09:42 PM.
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