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Originally Posted by rajat vynar
यहाँ पर इतना लम्बा 'जीवन का आनन्द' लिखने की ज़रूरत ही नहीं है। संक्षेप में जीवन-आनन्द लिखना ही बहुत है। अर्थ वही निकलेगा।
और फिर खोता-वोता कुछ नहीं है। सिर्फ भ्रम है। एक बात और जो समझ में आई है वे ये कि एक लम्बे बुरे समय का कष्ट अनुभव करने के बाद काम करने के बारे में सोचने से अच्छा है नियमित काम में व्यस्त रहा जाए, नहीं तो नज़र लगने का भी खतरा बरकरार रहता है।
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रजत जी विषय को कहाँ से कहाँ ले जाने से कोई फायदा नहीं ख्वामखाह हम सब बहस करेंगे जिसका अंत ठीक होगा ही नहीं ..
ठीक है आपको जो भी लगे आप इस आलेख के लिए समझ सकते हैं ..
मुझे जो बातें सही और अछि लगतीं हैं सबसे शेयर किया करती हूँ .
धन्यवाद