Re: मंटो ने कहा था
मंटो: निरंतर संघर्ष का नाम
बंटवारे के बाद मंटो जनवरी 1948 में लाहौर, पाकिस्तान जा कर बस गये. आर्थिक संकटों से जूझते हुए बहुत अधिक शराब का सेवन करने लगे. सेहत भी खराब हो गई. दो बार मानसिक रुग्णालय में भी रहना पड़ा. जीवन के अंतिम वर्षों में टी.बी. का शिकार हुये. इसके अतिरिक्त मंटो की कुछ कहानियों जैसे – बू, ठंडा गोश्त, खोल दो आदि पर अश्लीलता के आरोप लगे और मुकद्दमे चलाये गए. उन्होंने 100 से अधिक रेडियो ड्रामा भी लिखे. लाहौर में मंटो की आर्थिक बदहाली का यह आलम था कि उन्होंने एक बोतल शराब के लिए कहानी बेचना गवारा करना पड़ा. कहते हैं कि इस दौर में उन्होंने 40 दिन में चालीस कहानिया लिख दी थीं. कई बार मंटो किसी के द्वारा कहे हुए जुमले पर या फरमाइश पर कहानी लिख देते थे. उनके कृतित्व में 20 कहानी-संग्रह, ड्रामे, संस्मरण, अनुवाद, मजमुए आदि की कई किताबें शामिल हैं.
मंटो ने विभाजन की त्रासदी को बहुत नज़दीक से देखा और महसूस किया था जो उनकी बहुत सी कहानियों और लघु कथाओं में बड़ी जीवंतता से उभरता है. उनकी एक लोकप्रिय कहानी है “टोबा टेक सिंह” जिसमे देश विभाजन की विभीषिका में एक पागलखाने के पागलों के बंटवारे की समस्या के आधार पर उस समय के उन्माद का चित्रण किया गया है.
**
|