[QUOTE=Dr. Rakesh Srivastava;188724]
न जाने कौन सी शय ले के आयी है ये दुनिया में ;
सभी मर्दों के सीने में ये ख्वाहिश बन के धड़की है .
डॉ. राकेश श्रीवास्तव, ऐसी सुन्दर रचना के लिये तारीफ़ के जितने शब्द लिखे जाएँ, नाकाफ़ी हैं. रचना की इन पंक्तियों को लिखने के लिये जो दिल चाहिए और जो भावनाओं की शिद्दत चाहिए वही गज़ल के आरम्भ से ले कर अंत तक हर शब्द में झलकती है. एक अति श्रेष्ठ रचना से रु-ब-रू करवाने के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद.