Re: गांधीवादः डॉ. राममनोहर लोहिया
सरकार बनने के बाद गांधीवाद के इस पलायन को दो दृष्टियों से देखना होगा - गांधीवाद जब विपक्ष में था, तो उसके अन्दर क्या था, और क्या नहीं था। उसमें चरखा था और राकेट नहीं था। यह वाक्य केवल मुहावरेबाजी नहीं है। वह गांधीवाद का कुछ अतिसरलीकरण तो है, लेकिन ये वाक्य गांधीवाद के सार को ठोस रूप देकर प्रस्तुत करता है। इस सार के उपर पडे आवरण को हटा दें, तो यह ऐसा अनाकर्ष कभी नहीं है। लेकिन दुर्भाग्यवश, गांधीजी में असली टिका। बातें वक्ती बातों के साथ जिस तरह जुडी हुई हैं, जीवन की अनश्वरता के प्रति आश्वस्त आदमी ही उसका जोखिम उठा सकता था।
वे शायद सोचते थे कि उनके प्रिय शिष्य उनके सिद्धान्त की टिका। बातों को जीवित रखेंगे, और जरूरत के मुताबिक बदलने वाली वक्ती बातों से उसे सजाते रहेंगे, किन्तु शिष्यों के मामले में कोई पैगम्बर गांधीजी जैसा अभाग्यशाली नहीं रहा। बहरहाल इसके बारे में आगे फिर कहूंगा। चरखा वक्ती चीज है। इसी तरह प्राकृतिक चिकित्सा अंशगमहत्व की चीज है यद्यपि सर्वथा वक्ती नहीं। गांधीजी का ठोस प्रतीक तात्कालिक कार्य के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन सव्यिता को जारी रखने के लिए यह भी उतना ही जरूरी है कि ठोस प्रतीक में उसका अमूर्त सिद्धान्त निकाला जाये। ये सिद्धान्त हैं : आदमी के पास ऐसे औजार होने चाहिए जिस पर कई अर्थ़ों में उसका नियंत्रण हो। उसका तात्कालिक निवास क्षेत्र आत्मनिर्भर और प्रत्यक्ष लोकतंत्र द्वारा शासित हो। चरखे का सन्देश है नियत्रण योग्य मशीनें और गांव शासन।
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