Re: जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल 2015 : 21 जनवरी से साहित
महोत्सव में जावेद अख्तर, गुलज़ार व प्रसून जोशी
गीतकार प्रसून जोशी का कहना था कि पहले हम बहुत अलग ढंग से सोचते थे. ''दरसल पहले अभिभावक बच्चों को उन इलाक़ो की तरफ़ जाने नहीं देते जहाँ मुन्नी बदनाम हुई. अब प्रजातांत्रीकरण हो गया है. ये काम बाज़ार ने किया है. बाज़ार ने दरवाज़े खोल दिए हैं.'' जावेद ने बेलाग कहा, ''दरसल तमीज़ कम हो गई है. पहले के गाने कितने अच्छे होते थे. हमारी फ़िल्मों का अपना एक व्याकरण है, इनका अपना एक पारंपरिक ढांचा है, उसे तोड़ा न जाए. ''जावेद ने मंच को निहारा और अपने संग बैठे गुलज़ार और प्रसून को देख कर सभागार में लोगो की जानिब मुख़ातिब हुए और बोले, ''जहां तक हम तीनों की ज़िम्मेदारी है आप बेफ़िक्र रहें, ना जाने हमें कितनी फिल्में छोड़नी पड़ती हैं, ना जाने कितनी जगह झगड़ा होता है, लोग कहते हैं ये बद दिमाग़ है, अहंकारी है,ये ना जाने अपने को क्या समझते हैं, एक शब्द बदलने में इनको ना जाने क्या तकलीफ़ हो रही है.'' तभी बग़ल में बैठे गुलज़ार ने कहा बिलकुल सही कह रहे है.
जावेद और आगे बढ़े और कहा,''आप चाहे हम पर कोई इल्ज़ाम लगा दें, मगर ये कोईनहीं कह सकता कि हम तीनों ने कभी अश्लील या द्विअर्थी शब्द इस्तेमाल किये हों. मगर अब हमें आपका भी साथ चाहिए. आप अच्छे गीत संगीत को सराहें, बुरे कोपनाह न दें. थोड़ा आप भी तो हाथ बढ़ाएं, ये लड़ाई हम लड़ ज़रूर रहे हैं, लेकिन आपके बग़ैर जीत नहीं पाएंगे.''समाज का एक बड़ा हिस्सा इन गीतकारों केलिखे नग़मे गुनगुनाता रहा है.पर क्या समाज नग़मो की सुन्दरता बरक़रार रखनेकी इनकी सलाह पर भी उतना ही ग़ौर करेगा.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 22-01-2015 at 08:35 PM.
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