Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
खैर इस सबके बीच गांव के चौक चौराहे पर अभी चुनावी माहौल था। गांव में अभी तक लोकतंत्र की धमक नहीं पड़ी थी और गांव में दबंगों का ही राज चलता था। गांव के नरेश सिंह, महेसर सिंह, काको सिंह सहित अन्य लोगों की एक जमात थी जिसकी राजनीति पर पकड़ थी और गांव में मंत्री से लेकर संत्री तक सबसे पहले उनके द्वार पर ही आकर मथ्था टेकते। गांव बड़ा था और यहां के बोट का महत्व भी सर्वाधिक था। अभी तक सभी जानते थे कि गांव मे वोट देने का अधिकार किसी को नहीं है। गांव में सवर्णो के वनिस्पत दलितों और पिछड़ो की आबादी अधिक थी पर किसी को अपने वोट का महत्व नहीं पता ?
मतदान के दिन गांव में सुबह से ही फरमान सुना दिया जाता कि कोई स्कूल में बोट देने के लिए नहीं जाएगा जो जाएगा उसे विरोधी माना जाएगा। आजादी के पांच दशक हो जाने के बाद भी गांव के सर्वाधिक लोग वोट देने नहीं जाते। वही जाते जो दबंगों के समर्थक होते। ऐसी बात नहीं थी कि सारा गांव उनके आगे नतमस्क था। विरोध की चिंगारी भी जल रही थी। गांव के ही सूटर सिंह समाजवादी पार्टी का झंडा लेकर समूचे गांव में अकेले घूमते और इसका विरोध करने के लिए लोगों को जगाते पर दिन के उजाले मे कोई उनका साथ नहीं देता। हां, रात गहराने पर सूटर सिंह लोगों के घर जाते और अपना अपना वोट सब दें इसके लिए सबको समझाते पर किसी में हौसला नहीं पनपता। पनपता भी कैसे। जब-जब किसी ने हौसला किया उसे मूंह की खानी पड़ी और बूथ पर या तो उसकी पिटाई की गई या फिर पुलिस ने उसे झूठे मुकदमें में फंसा कर अंदर कर दिया। गांव में इस असमानता के विरूद्ध जली चिंगारी आज रात मुझ तक पहूंच गई। रात करीब नौ बजे अपने दोस्त कमल, चिंटू सहित अन्य के साथ नहर पर बैठे बतिया रहे थे।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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