Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
‘‘तब कोई उपाय नै हो, ठीके है यहैं सुतहो, पर बभान के बच्चा लगो हो पर यहां कोई नै देखतो, सब रूपया देखो है, रूपैया। रूपैया हो तो बाभन नै हो तो शुदर।
मैं उसी तरह बैठा रचा, चुकोमुको-चुपचाप। जो जगह मेरे सोने की थी वहां नहीं सोया जा सकता, पैखाना घर के ठीक आगे। जेल में क्षमता से अधिक कैदी थे इसलिए सबके लिए समुचित व्यवस्था नहीं हो सकता और जेल का भ्रष्टाचार भी इसमे मदद कर रहा था और धनी लोगों के लिए अलग अलग व्यवस्था थी, अलग अलग बार्ड था। बगल के लोगों ने सब बता दिया। जिस बार्ड में मैं था उसका नाम ही हरिजन बार्ड था। विभेद की एक बड़ी रेखा यहां भी खिंची हुई थी और समाज के इस विभेद का सच जाति नहीं पैसा के रूप में सामने आया। पैसा है तो बाभन बार्ड नहीं तो हरिजन बार्ड। इस बार्ड को आमद बार्ड के रूप में भी जाना जाता था। सबसे पहले सबको यहीं आना था फिर जिस तरह का जो पैसाबाला होता, उस तरह उसकी व्यवस्था की जाती।
आंखों में नीद नहीं थी और शुन्यता का गहरा समुंद्र मन में उतर कर ज्वारभाटे की तरह प्रेम की दीवार से टकरा कर उसके गरूर को चूर चूर कर देने का प्रयास कर रही थी पर मन में यह भी भरोसा होता कि बिना आग में तपाये सोना की परख जब नहीं होती तो हम कौन है? और फिर तपने पर देह तो जलेगा ही।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 22-11-2014 at 01:05 PM.
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