Re: कथा-लघुकथा
तेरी गठरी में लागा चोर
आलेख आभार: ओ. पी. पारिक
मेरे मित्र एक दिलचस्प घटना सुनाया करते थे. राजस्*थान की गंगानगर मंडी में किसान आढ़तियों के यहॉं अपनी पैदावार बैलगाड़ी में ले कर आते तुलाई होती, तोल की पर्ची कटती और सांझ को तोल का हिसाब कर किसान का पैसा चुकता किया जाता. वहॉं तुलाई के बाद आढ़तिए के जो मुलाजिम हिसाब कर पैसे देते थे उन्*हें सब ‘भगत जी’ कह कर पुकारते थे. यों सारे दिन मंडी में ‘भगत जी’ ‘भगत जी’ का शोर मचता रहता था. लिहाजा भगतजियों का बड़ा रूआब था और उन को कोई चुनौती भी नहीं दे सकता था.
एक दिन एक किसान डेढ़ क्विंटल (150 कि.ग्रा.) गुड़ की भेली भली-भांति धर्म-कॉंटे पर तोल करवा कर बैलगाड़ी पर लाद आढ़तिये को बेचने के लिए आया. आढ़तिये के मुलाजिम ‘भगत जी’ ने कहा तुम शाम को आ जाना, तब तक तौल की पर्ची बना कर तैयार रखेंगें. किसान ने बैल को गाड़ी से अलग कर बॉंध दिया और गाड़ी ‘भगत जी’ को सौंप कर रोटी खाने चला गया. दुपहर हो चुकी थी इसलिए रोटी खा कर पेड़ की ठंडी छॉंव में सो गया. शाम को जा कर ‘भगत जी’ से तौल की पर्ची मांगी तो पता चला कि एक क्विंटल (100 कि.ग्रा.) की पर्ची बनी है. किसान को काटो तो खून नहीं, उसका तो दिमाग घूम गया कि 50 किलो गुड़ कम कैसे हो गया? ‘भगत जी’ पर बेईमानी का लॉंछन वह लगा नहीं सकता था उसे नरक में थोड़ी जाना था. धर्म कॉंटा भी गलत नहीं हो सकता. फिर गुड़ गया कहां?
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 13-06-2014 at 11:10 PM.
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