Re: कथा-लघुकथा
अब जाट तो जाट होता हैं उसका दिमाग भन्ना गया. उसने सोचा हो ना हो या तो बैल गड़बड़ है या फिर गाड़ी. बस उसने मन ही मन कुछ सोचा और केरोसिन से भरा कनस्तर खरीद लाया और बीच मंडी में अपने बैल और गाड़ी को खड़ा कर उन पर केरोसिन छिड़क दिया. केरोसिन आस-पास भी फैल गया. अब उसने माचिस निकाली ही थी कि आस-पास के ‘भगत जी’ और आढ़तिये उसकी और लपके. केरोसिन की गंध ने किसान क्या करने जा रहा है बता दिया था. लेकिन लाख दर्जे का सवाल था कि आखिर वह ऐसा कर क्यों रहा हैं? किसान को रोका तो वह आग-बबूला हो गया. चिल्*लाया मेरे मामलें में किसी को भी पड़नें की जरूरत नहीं हैं. ये मेरा और मेरे बैलगाड़ी का मामला है. मैं अपने आप सलट लूँगा. भगतजियों और आढ़तियों को मंडी में आग लगनें का डर सता रहा था. उन्*होंने आखिर उसे बैल और गाड़ी को आग लगानें का कारण बतानें के लिए राजी कर लिया.
किसान ने कहा भाईयों मैं धर्मकॉंटें पर तुलवा कर 150 किलों गुड़ लाया था और भगतजी ने तौल कर 100 किलों का हिसाब चुकता किया है. अब आप ही बताओं बाकी 50 किलों कहॉं गया? या तो यह बैल चाट गया या फिर यह गाड़ी खा गई. क्*योंकि यहां तो सारे के सारे ‘भगत’ है, जहॉं देखों जिधर देखों ‘भगत जी’ ही ‘भगत जी’. ऐसे में मैं कैसे कह सकता हूँ कि ‘भगत जी’ की धूर्तता है. सो बेहतर यही है कि बैलगाड़ी और बैल दोनों को ही आग क्यों ना लगा दूँ.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 13-06-2014 at 11:16 PM.
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