Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अहंकार तले दबा ज्ञान
एक युवा ब्रह्मचारी की यह तमन्ना हुई कि वह दुनिया में जितनी भी कलाएं हैं, उन सभी को सीखे। उसका मानना था कि वह जितनी कलाएं सीख लेगा, उसका रूतबा उतना ही बढ़ता जाएगा और वह बड़ा आदमी कहलाएगा। अपने इस इरादे के साथ ही उसने कई देशों में घूमकर अनेक कलाएं सीखीं। पहले वह एक देश में पहुंचा और वहां उसने एक व्यक्ति से बाण बनाने की कला सीखी। जब उसे लगा कि वह बाण बनाना सीख गया है, तो कुछ दिनों के बाद वह अन्य देश की यात्रा पर निकल गया। वहां पहुंचकर उसने जहाज बनाने की कला सीखी, क्योंकि वहां बहुतायत में जहाज बनाए जाते थे। फिर वह तीसरे देश में जा पहुंचा और कई ऐसे लोगों के संपर्क में आया जो गृह निर्माण करते थे। यहां उसने तरह-तरह की गृह निर्माण कला सीखी। इस प्रकार वह सोलह देशों में गया और कई तरह की कलाओं का ज्ञाता होकर लौटा। घर वापस आकर वह इस अहंकार में भर गया कि उसने कई तरह की कलाएं सीख ली हैं। अपने अहंकार के चलते वह लोगों से कहता- इस संपूर्ण पृथ्वी पर मुझ जैसा कोई गुणी व्यक्ति है? लोग हैरत से उसे देखते। धीरे-धीरे यह बात बुद्ध तक भी पहुंची। बुद्ध उसे जानते थे। वह उसकी प्रतिभा से भी परिचित थे। वह इस बात से चिंतित हो गए कि कहीं उसका अभिमान उसका नाश न कर दे। एक दिन वे भिखारी का वेश बनाकर हाथ में भिक्षापात्र लिए उसके सामने गए। ब्रह्मचारी ने बड़े अभिमान से पूछा - कौन हो तुम ? बुद्ध बोले - मैं आत्मविजय का पथिक हूं। ब्रह्मचारी ने उनके कथन का अर्थ जानना चाहा तो वे बोले - एक मामूली हथियार निर्माता भी बाण बना लेता है, नौ चालक जहाज पर नियंत्रण रख लेता है, गृह निर्माता घर भी बना लेता है। केवल ज्ञान से ही कुछ नहीं होने वाला है। असल उपलब्धि है निर्मल मन। अगर मन पवित्र नहीं हुआ, तो सारा ज्ञान व्यर्थ है। अहंकार से मुक्त व्यक्ति ही ईश्वर को पा सकता है। यह सुनकर ब्रह्मचारी को अपनी भूल का अहसास हो गया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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