Re: डार्क सेंट की पाठशाला
पहले खुद में बदलाव लाएं
हममें से ज्यादातर लोग व्यवस्था को बदलने का आग्रह करते हैं। ऐसे लोगों को अपने जीवन में कभी समाधान प्राप्त नहीं हो सकता। समाधान पाने के लिए खुद में बदलाव लाना जरूरी है। आज पहले की अपेक्षा सुविधावाद अधिक बढ़ गया है। पुराने जमाने में जो साधन-सामग्री सिर्फ राजाओं-महाराजाओं के लिए हुआ करती थी वह आज साधारण जन के लिए भी आसानी से उपलब्ध है। फिर भी हर व्यक्ति तनावग्रस्त है। उसके सामने विविध प्रकार की समस्याएं हैं। आज कठिनाइयों के रूप बदल गए हैं। लेकिन जीवन के साथ उनका अटूट सम्बंध है। जहां जीवन है वहां समस्याएं और कठिनाइयां भी हैं। जो परिस्थितिवादी होता है वह स्वयं के सुधार और बदलाव पर ध्यान नहीं दे कर सिर्फ परिस्थितियों को ही दोष देता है। मसलन,एक भोली महिला ने एक दिन दर्पण में अपना चेहरा देखा। वह बहुत क्रोधित हुई। उसने उस दर्पण को बाहर फेंक दिया। उसने तीन-चार बार ऐसा किया। पास ही एक और महिला खड़ी थी। उसने कहा, यदि आपके पास दर्पण अधिक हों तो मुझे दे दो। पहली महिला ने कहा इन्हें लेकर क्या करोगी? इनमें खराब प्रतिबिंब दिखता है। यह सुनकर दूसरी महिला ने पहली महिला की ओर देखा। फिर बोली, बहन! एक बार मेरा कहना मान कर आप अपने चेहरे की सफाई कर लो। पहली महिला भोली थी पर जिद्दी नहीं थी। उसने उसके सुझाव के अनुसार पानी से अपना चेहरा अच्छी तरह से धोया। फिर जब दर्पण देखा तो प्रसन्न हो गई। बोली, यह दर्पण अच्छा है। इसमें चेहरा साफ दिखता है। इसे मैं अपने पास रखूंगी। तब उस समझदार महिला ने कहा, दर्पण पर दोष लगाना ठीक नहीं है। पहले आपके चेहरे पर धब्बे लगे थे। चेहरे की सफाई करने से आपका प्रतिबिंब सुंदर दिखाई देने लगा। याने मनुष्य खुद के भीतर देख ले और समस्या को समझ जाए तो जीवन में कोई कठिनाई ही नहीं रहेगी लेकिन आज हम इस विचारधारा से दूर होकर केवल व्यवस्था से नाराज हो जाते हैं जो उचित नहीं है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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