Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अंतरात्मा की आवाज
विश्वविख्यात वैज्ञानिक सीवी रमन रंगून में ब्रिटिश सरकार की नौकरी में थे। वह लेखपाल के पद पर काम कर रहे थे। रमन बहुत ही स्वाभिमानी थे। उनमें देशभक्ति की भावना भी कूट-कूट कर भरी हुई थी। यदि उनका अंग्रेज अधिकारी कोई भी ऐसा आदेश देता, जो उनकी दृष्टि में अथवा सामान्य रूप से अनुचित होता था, तो वह नि:संकोच उसे मानने से इंकार कर देते थे और उसके नुकसान की परवाह भी नहीं करते थे। उन्होंने तय कर रखा था कि जीवन में वह एक सीमा से ज्यादा समझौता किसी भी हालत में नहीं करेंगे। एक दिन एक अंग्रेज अधिकारी ने उन्हें अपने कमरे में बुलाया और कहा - एक बौद्ध नागरिक की भूमि को एक अंग्रेज के नाम करना है। तुम इसके लिए आवश्यक दस्तावेज बनवा दो और जल्दी से उन्हें मेरे सामने लेकर आओ। यह सुनकर रमन घबराए नहीं और निर्भीकता से बोले - सर, मैं भगवान श्रीकृष्ण तथा उनकी गीता का उपासक हूं। किसी की खून पसीने से अर्जित की गई कमाई अथवा उसकी जायज जमीन को धोखाधड़ी से मैं किसी दूसरे के नाम करके अधर्म नहीं करना चाहता। मेरी नजर में यह पाप है। मैं किसी भी हालत में ऐसा नहीं कर सकूंगा। अच्छा है कि आप भी इस पापकर्म को न करें। यह अधर्म है। यह सुनकर अंग्रेज अधिकारी को बेहद गुस्सा आ गया और वह तमतमाकर बोला - नौकरी के अंतर्गत अधिकारी की आज्ञा मानना तुम्हारा धर्म है। इस पर रमन बोले - सर, यदि अधिकारी कोई गलत कार्य अथवा पाप कर्म करने को कहे तो उसकी अवहेलना करना भी मेरा धर्म है। मैं अपना धर्म निभा रहा हूं। रमन की बात पर अधिकारी ने कहा - यदि तुम्हें नौकरी करनी है, तो जो मैं कहूंगा, तुम्हें वही करना पड़ेगा। तुम्हें मेरी बात माननी होगी। रमन ने आत्म विश्वास से कहा - मैं तुम्हारी बात नहीं अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनूंगा और ईमानदारी का साथ दूंगा। इसके बाद उन्होंने तत्काल अपना त्यागपत्र अंग्रेज अधिकारी को सौंप दिया। अंग्रेज अधिकारी एक सच्चे भारतीय की निष्पक्षता और सत्य के प्रति निष्ठा देखकर दंग रह गया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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