Re: कहानी: मिट्टी का माधव
पुरानी दिल्ली के इस अनाम सीलन भरे मोहल्ले में न जाने कितने इंसान सिर्फ इंसान बन कर रहते थे , हां भले ही बाहर वाले उनकी पहचान हिन्दू और मुसलमान के रूप में करते थे . पर इस मोहल्ले में रहमान का दर्द श्याम महसूस करता था और रामबिहारी की ख़ुशी सुल्तान की भी होती थी . गुप्ताइन के घर की सत्यनारायण की कथा का प्रसाद सबसे पहले रजिया के घर जाता था , और सुल्ताना बी की ईदी ठकुराइन के घर वालो का मुंह मीठा कराते थे .
और इसी अनाम मोहल्ले की एक अँधेरी गली में दो घर थे पहला रामनारायण मिश्रा यानि मुंशी जी का और उससे 6 मकान आगे अनवर अली यानि मौलाना साहब का , इन दोनों की पीढ़िया यही गुजरी थी , दोनों घरो में मेल मिलाप ऐसा की बाहर से आने वाला शायद ही इन दोनों घरो में भेद कर पाए .
मील मुंशी रामनारायण मिश्रा के तीनो लडको में सबसे छोटा लड़का था “ माधव मिश्रा “ . पढने में मेघावी , विचारो में तेज़ , देखने में सुंदर, दिल का साफ और जाति धर्म से ऊपर अखंड देशभक्त . पढाई के साथ साथ एक राजनीतिक दल का सक्रिय सदस्य भी .
और मौलाना साहब की एकलौती बेटी जिसे नजाकत , नफासत , इल्म संजीदगी और खूबसूरती को मिला कर खुदा ने उस पाकीजा रूह को बनाया उसे इस जहाँ में नाम मिला “ मुमताज “. उसकी खूबसूरती में एक अजीब सा तिलस्म जैसा था जो देखता उसमे कैद सा हो जाता. और इन सब से कहीं ज्यादा भोली और मासूम थी मुमताज.
माधव और मुमताज साथ साथ खेले और पले थे , रोएं और हँसे थे , साथ साथ एक दुसरे से रूठे भी थे और एक दुसरे को मनाया भी था . अब दोनों बचपन की पगडंडिया पार कर जवानी की सरपट भागती सड़क पर थे और अब साथ साथ बेहिसाब मोहब्बत भी कर रहे थे वो भी एक दुसरे से . ये जानते हुए भी उनके पाक इश्क के बीच में मजहब की दीवार खड़ी है उन्हें अपने रब और उस से भी ज्यादा अपने इश्क पर यकीं था.
अब माधव को अक्सर पार्टी की काम की वजह से बाहर जाना होता था और बिना एक दुसरे को देखे अपना दिन गुजारना माधव और मुमताज की सब से बड़ी सजा होती थी.
>>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|