Re: बॉलीवुड के 101 वर्ष> महत्वपूर्ण पड़ाव
बॉलीवुड के 101 वर्ष> महत्वपूर्ण पड़ाव
'धरतीके लाल' और 'नीचा नगर' के माध्यम से दर्शकों को खुली हवा का स्पर्श मिलाऔर अपनी माटी की सोंधी सुगन्ध, मुल्क की समस्याओं एवं विभीषिकाओं के बारेमें लोगों की आंखें खुली। 'देवदास', 'बन्दिनी', 'सुजाता' और 'परख' जैसीफिल्में उस समय बॉक्स ऑफिस पर उतनी सफल नहीं रहने के बावजूद ये फिल्मों केभारतीय इतिहास के नये युग की प्रवर्तक मानी जाती हैं।
महबूबखान की साल 1957 में बनी फिल्म 'मदर इंडिया' हिन्दी फिल्म निर्माण केक्षेत्र में मील का पत्थर मानी जाती है। सत्यजीत रे की फिल्म 'पाथेरपांचाली' और 'शम्भू मित्रा' की फिल्म जागते रहो फिल्म निर्माण और कथानक काशानदार उदाहरण थी। इस सीरीज को स्टर्लिंग इंवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड केबैनर तले निर्माता निर्देशक के आसिफ ने मुगले आजम के माध्यम से नईऊंचाईयों तक पहुंचाया। त्रिलोक जेतली ने गोदान के निर्माता निर्देशक के रूपमें जिस प्रकार आर्थिक नुकसान का ख्याल किये बिना प्रेमचंद की आत्मा कोसामने रखा, वह आज भी आदर्श है। गोदान के बाद ही साहित्यिक कतियों पर फिल्मबनाने का सिलसिला शुरू हुआ।
प्रयोगवाद की बात करें तो गुरूदत्तकी फिल्में 'प्यासा', 'कागज के फूल' तथा 'साहब बीबी' और 'गुलाम' को कौन भूलसकता है। मुजफ्फर अली की 'गमन' और विनोद पांडेकी ‘एक बार फिर’ ने इससिलसिले को आगे बढ़ाया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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