14-02-2014, 06:05 PM
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Re: मार्टिन लूथर किंग-" I have a dream "
John F. Kennedy's Inaugural Speech
यूनाइटेड स्टेट्स कैपिटल
वॉशिंगटन, डी.सी.
20 जनवरी, 1961
उप राष्ट्रपति जॉन्सन, अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति आइज़नहॉवर, उप राष्ट्रपति निक्सन, राष्ट्रपति ट्रूमैन, आदरणीय सीनेटरगण, साथी देशवासियों:
आज हम दल का विजयोत्सव नहीं मना रहे हैं, बल्कि आज़ादी का जश्न मना रहे हैं — जो समापन के साथ-साथ एक शुरुआत का प्रतीक है — जो नवीनीकरण के साथ-साथ परिवर्तन को दर्शाता है। मैंने आपके और सर्वशक्तिमान ईश्वर के समक्ष वही पवित्र शपथ ली है, जिसे हमारे पूर्वजों ने एक सौ पचहत्तर वर्ष पहले निर्धारित किया था।
दुनिया बहुत बदल चुकी है। मनुष्य के घातक हाथों में हर प्रकार की मानवीय ग़रीबी और हर प्रकार के मानवीय जीवन को नष्ट करने की शक्ति है। और फिर भी वही क्रांतिकारी मान्यताएँ जिनके लिए हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया आज भी दुनिया भर में समस्या का कारण बनी हुई हैं - यह मान्यता कि मनुष्य के अधिकार राजकीय उदारता न होकर भगवान की देन हैं।
हमें आज यह भूलने की बिल्कुल भी गलती नहीं करनी चाहिए कि हम उस पहली क्रांति के उत्तराधिकारी हैं। आज, इस समय और इसी जगह से, हमारे मित्र और शत्रु, दोनों तक यह संदेश पहुँचने दें कि अमरीका की नई पीढ़ी के हाथों मशाल को सौंप दिया गया है — जो इस सदी में जन्मी, युद्ध से प्रभावित, कठोर और कटु शांति द्वारा अनुशासित, हमारी प्राचीन संस्कृति के गौरव को महसूस करने वाली — और उन मानवाधिकारों का धीरे-धीरे सर्वनाश होते हुए देखने या अनुमति देने के लिए अनिच्छुक है जिनके प्रति यह देश हमेशा से प्रतिबद्ध रहा है, और जिनके प्रति आज हम और पूरी दुनिया प्रतिबद्ध है।
प्रत्येक राष्ट्र यह जान ले, भले ही वह हमारा भला चाहता हो या बुरा, कि हम स्वाधीनता बनाए रखने और उसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए कोई भी क़ीमत चुकाने, कोई भी बोझ उठाने, कोई भी कठिनाई झेलने, किसी भी मित्र की मदद करने, किसी भी शत्रु का सामना करने के लिए तैयार हैं।
हम इतना ही नहीं - इससे अधिक का वचन देते हैं।
हम उन पुराने मित्र राष्ट्रों के प्रति विश्वसनीय मित्रों की वफ़ादारी का वचन देते हैं, जिनके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल हमारे जैसे हैं। साथ मिलकर शायद ही ऐसे कोई सहयोगी साहसिक कार्य होंगे, जिन्हें हम न कर पाएँ। विभक्त होकर हम शायद ही कुछ कर पाएँगे - क्योंकि ऐसे में विषम और अलग टुकड़ों में बँटकर हम किसी शक्तिशाली चुनौती का सामना नहीं कर सकते।
उन नए राष्ट्रों को, जिनका हम स्वाधीन वर्ग में स्वागत करते हैं, हम यह वचन देकर कहते हैं कि एक प्रकार के औपनिवेशिक नियंत्रण को केवल इसलिए नहीं हटाया गया है ताकि उससे भी अधिक क्रूर निरंकुश शासन उसकी जगह ले सके। हमें हमेशा इस बात की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वे हमारे दृष्टिकोण का समर्थन करेंगे। बल्कि हमें सदैव यह आशा करनी चाहिए कि वे दृढ़ता से अपनी स्वाधीनता का समर्थन करेंगे - और यह याद रखें कि अतीत में, जिन लोगों ने शेर पर सवार होकर अधिकार पाने की मूर्खता की है, वे उसी के आहार बन गए।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 18-02-2014 at 08:21 PM.
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