Re: मार्टिन लूथर किंग-" I have a dream "
हम इस पवित्र स्थान पर इसलिए भी आये हैं कि हम अमेरिका को याद दिला सकें कि इसे तत्काल करने की सख्तआवश्यकता है. अब और शांत रहने या फिर खुद को दिलासा देने का वक़्त नहीं है. अब लोकतंत्र के दिए वचन को निभाने का वक़्त है. अब वक़्त है अँधेरी और निर्जन घाटी से निकलकर नस्ली न्याय (racial justice) के आलोकित पथ पर चलने का अब वक़्त है अपने देश को नस्ली अन्याय के दलदल से निकाल कर भाई-चारे की ठोस चट्टान खड़ा करने का. अब वक़्त है नस्ली न्याय को प्रभु की सभी संतानों के लिए वास्तविक बनाने का.
इस बात की तत्काल अनदेखी करना राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध होगा. नेग्रोज़ के वैध असंतोष की गर्मी तब तक ख़तम नहीं होगी जब तक स्वतंत्रता और समानता की ऋतु नहीं आ जाती. उन्नीस सौ तिरसठ एक अंत नहीं बल्कि एक आरम्भ है. जो ये आशा रखते हैं कि नीग्रो अपना क्रोध दिखाने के बाद फिर शांत हो जायेंगे देश फिर पुराने ढर्रेपे चलने लगेगा मानो कुछ हुआ ही नहीं, उन्हें एक असभ्य जाग्रति का सामना करना पड़ेगा. अमेरिका में तब तक सुख-शांति नहीं होगी जब तक नीग्रोज़ को नागरिकता का अधिकार नहीं मिल जाता है. विद्रोह का बवंडर तब तक हमारे देश की नीव हिलाता रहेगा जब तकन्याय की सुबह नहीं हो जाती.
लेकिन मैं अपने लोगों, जो न्याय के महल की देहलीज पे खड़े हैं, से ज़रूरकुछ कहना चाहूँगा. अपना उचित स्थान पाने की प्रक्रिया में हमें कोई गलत काम करने का दोषी नहीं बनना है. हमें अपनी आजादी की प्यासघृणाऔर कड़वाहट का प्याला पी कर नहीं बुझानी है.
हमें हमेशा अपना संघर्ष अनुशासन और सम्मान के दायरे में रह कर करना होगा. हमें कभी भी अपने रचनात्मक विरोध को शारीरिक हिंसा में नहीं बदलना है. हमें बार-बार खुद को उस स्तर तक ले जाना है , जहाँ हम शारीरिक बल का सामना आत्म बल से कर सकें. आज नीग्रोसमुदाय , एक अजीबआतंकवाद से घिरा हुआ है, हमें ऐसा कुछ नहीं करना है कि सभी श्वेत लोगहम पर अविश्वास करने लग जायें, क्योंकि हमारे कई श्वेत बंधु इस बात को जान चुके हैं की उनका भाग्य हमारे भाग्य से जुड़ा हुआ है , और ऐसा आज उनकी यहाँ पर उपस्थिति से प्रमाणित होता है. वो इस बात को जान चुके हैं कि उनकी स्वतंत्रता हमारी स्वतंत्रता से जुड़ी हुई है. हम अकेले नहीं चल सकते.
हम जैसे जैसे चलें, इस बात का प्रण करें कि हम हमेशा आगे बढ़ते रहेंगे. हम कभी वापस नहींमुड़ सकते. कुछ ऐसे लोग भी हैं जो हम नागरिक अधिकारों के भक्तों से पूछ रहे हैं कि, “आखिर हम कब संतुष्ट होंगे?” >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 18-02-2014 at 06:31 PM.
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