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rajnish manga
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Default Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक

द्रौपदी

पूरे भारत के इतिहास में द्रौपदी को सिर्फ एक आदमी ने ही प्रशंसा दी है। और एक ऐसे आदमी ने जो बिलकुल अनपेक्षित है। पूरे भारत के इतिहास में डाक्टर राम मनोहर लोहिया को छोड़कर किसी आदमी ने द्रौपदी को सम्मान नहीं दिया है। हैरानी की बात है मेरा तो लोहिया से प्रेम इस बात से हो गया कि पाँच हजार साल के इतिहास में एक आदमी, जो द्रौपदी को सीता के ऊपर रखने को तैयार है।

यह जो मैंने कहा, आदमी करता है कर्म फल की अति आकांक्षा से, कर्म भी नहीं हो पाता और फल की अति आकांक्षा से दुराशा और निराशा ही हाथ लगती है। कृष्ण ने यह बहुत बहुमूल्य सूत्र कहा है। इसे हृदय के बहुत कोने में सम्हालकर रख लेने जैसा है। करें कर्म, वह हाथ में है, अभी है, यहीं है। फल को छोडें। फल को छोडने का साहस दिखलाए। कर्म को करने का संकल्प, फल को छोड़ने का साहस, फिर कर्म निश्चित ही फल ले आता है। लेकिन आप उस फल को मत लाएं, वह तो कर्म के पीछे छाया की तरह चला आता है। और जिसने छोड़ा भरोसे से, उसके छोड़ने पर ही, उसके भरोसे में ही, जगत की सारी ऊर्जा सहयोगी हो जाती है।

जैसे ही हम मांग करते हैं, ऐसा हो, वैसे ही हम जगतऊर्जा के विपरीत खड़े हो जाते हैं और शत्रु हो जाते हैं। जैसे ही हम कहते हैं, जो तेरी मर्जी; जो हमें करना था, वह हमने कर लिया, अब तेरी मर्जी पूरी हो, हम जगतऊर्जा के प्रति मैत्री से भर जाते हैं। और जगत और हमारे बीच, जीवनऊर्जा और हमारे बीच, परमात्मा और हमारे बीच एक हार्मनी, एक संगीत फलित हो जाता है। जैसे ही हमने कहा कि नहीं, किया भी मैंने, जो चाहता हूं वह हो भी, वैसे ही हम जगत के विपरीत खड़े हो गए हैं। और जगत के विपरीत खड़े होकर सिवाय निराशा के, असफलता के कभी कुछ हाथ नहीं लगता है। इसलिए कर्मयोगी के लिए कर्म ही अधिकार है। फल! फल परमात्मा का प्रसाद है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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