Re: कुरआन और विज्ञान |
अंतिमाक्षर
Final Verdict
पवित्र क़ुरआन में वैज्ञानिक यथार्थ की उपस्थिति को संयोग क़रार देना दर अस्ल एक ही समय में वास्तविक बौद्धिकता और सही वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बिल्कुल विरूद्व है। वास्ताव में क़ुरआन की पवित्र आयतों में शाश्वत वैज्ञानिकता, पवित्र क़ुरआन की स्पष्ट घोषणाओं की ओर संकेत करती है:
‘‘शीध्र ही हम उनको अपनी निशानियां सृष्टि में भी दिखाएंगे और उनके अपने ‘‘नफ़्स: मनस्थिति‘ में भी यहां तक कि उन पर यह बात खुल जाएगी कि यह पवित्र क़ुरआन बरहक़: शाश्वत-सत्य है। क्या यह पर्याप्त नहीं कि तेरा रब प्रत्येक वस्तु का गवाह है। (अल-क़ुरआन:सूर: 41 आयत .53 )
पवित्र क़ुरआन तमाम मानवजाति को निमंत्रण देता है कि वे सब कायनात: सृष्टि‘‘ की संरचना और उत्पत्ति पर चिंतन मनन करें:
‘‘ ज़मीन और आसमानों के जन्म में और रात और दिन की बारी बारी से आने में उन होशमंदों के लिये बहुत निशानियां हैं।‘‘(अल-क़ुरआन: सूर 3 आयत 190 )
पवित्र क़ुरआन में उपस्थित वैज्ञानिक साक्ष्य और अवस्थाएं सिद्ध करते हैं कि यह वाकई ‘‘इल्हामी‘‘ माध्यम से अवतरित हुआ है। आज से 1400 वर्ष पहले कोई व्यक्ति ऐसा नहीं था जो इस तरह महत्वपूर्ण और सटीक वैज्ञानिक यथार्थो पर अधारित कोई किताब लिख सकता।
यद्यपि पवित्र क़ुरआन कोई वैज्ञानिक ग्रंथ नहीं है बल्कि यह ‘निशानियों - Signs की पुस्तक है। यह निशानियां सम्पूर्ण मानव समुह को निमन्त्रणः दावत देती हैं कि वह पृथ्वी पर अपने अस्तित्व के प्रयोजन और उद्देश्य की अनुभूति करें और प्रकृति से समानता अपनाए हुए रहें। इसमें कोई संदेह नहीं कि पवित्र क़ुरआन अल्लाह ताला द्वारा अवतरित ‘वाणीः कलाम है रब्बुल आलमीनः सृष्टि के ईश्वर की वाणी है, जो सृष्टि का सृजन करने वाला रचनाकार और मालिक भी है और इसका संचालन भी कर रहा है।
इसमें अल्लाह तआ़ला की एकात्मता वहदानियत के होने का वही संदेश है जिसका, प्रचारः तबलीग़ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और हुजू़र नबी ए करीम हज़रत मुहम्मद स.अ.व. तक तमाम पैग़म्बरों ने किया है।
पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान के विषय पर अब तक बहुत कुछ विस्तार से लिखा जा चुका है और इस क्षेत्र में प्रत्येक क्षण निरंतर शोध जारी है। इन्शाअल्लाह यह शोध भी मानवीय समूह को अल्लाह तआला की वाणी के निकट लाने में सहायक सिद्ध होगा इस संक्षिप्त सी किताब में पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रस्तुत केवल कुछेक वैज्ञानिक यथार्थ संग्रहित किये गये है मै यह दावा नहीं कर सकता कि मैंने इस विषय के साथ पूरा पूरा इंसाफ़ किया है।
जापानी प्रोफ़ेसर तेजासान ने पवित्र कुरआन में बताई हुई केवल एक वैज्ञानिक निशानी के अटल यथार्थ होने के कारण,, इस्लाम मज़हब धारण किया बहुत सम्भव है कि कुछ लोगों को दस और कुछेक को 100 वैज्ञानिक निशानियों की आवश्यकता हो ताकि वे सब यह मान लें कि पवित्र क़ुरआन अल्लाह द्वारा अवतरित है। कुछ लोग शायद ऐसे भी हों जो हज़ार निशानियां देख लेने और उसकी पुष्टि के बावजूद सच्चाई। सत्य को स्वीकार न करना चाहते हों।पवित्र कुरआन ने निम्नलिखित आयतों में, ऐसे अनुदार दृष्टिकोण वालों की ‘भर्त्सनाः मुज़म्मत की है।
‘‘बहरे हैं, गूंगे हैं ,अंधे हैं यह अब नहीं पलटेंगे‘‘‘(अल-क़ुरआन: सूर 2 आयत 18 )
पवित्र क़ुरआन वैयक्तिक जीवन और सामूहिक समाज ,तमाम लोगों के लिये ही सम्पूर्ण जीवन आचारण है। अलहम्दुलिल्लाह पवित्र क़ुरआन हमें ज़िन्दगी गुज़ारने का जो तरीका़ बताता है वे इस सारे, वादों Isms से बहुत ऊपर है, जिसे आधुनिक मानव ने केवल अपनी नासमझी और अज्ञानता के आधार पर अविष्कृत: ईजाद किये हैं। क्या यह सम्भव है कि स्वंय सृजक और रचनाकार मालिक से ज़्यादा बेहतर नेतृत्व कोई और दे सके? मेरी ‘प्रार्थना दुआ‘ है कि अल्लाह तआ़ला मेरी इस मामूली सी कोशिश को स्वीकार करे हम पर ‘दया‘ रहम‘ करे और हमें सन्मार्गः सही रास्ता दिखाए
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