14-09-2015, 10:41 AM
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Re: ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव
पड़ोसी गाँव से नाव लेकर आता हुआ एक व्यक्ति इस भक्त को झोपड़ी के छत पर बैठा देख, अपना मार्ग बदलकर इस व्यक्ति को बचाने हेतु आया।
"चिंता मत करो भाई," उसने उत्साहपूर्वक कहा, "मेरी नाव में आ जाओ।"
"धन्यवाद लेकिन मुझे तुम्हारे साथ जाने की कोई आवश्यकता नहीं है," बाढ़ में फँसे व्यक्ति ने उत्तर दिया, "मुझे बचाने मेरे ईश्वर आयेंगे।"
यह कहानी मूर्खता की पराकाष्ठा दर्शाती है लेकिन सच्चाई तो यह है कि, मानवीय बुद्धिमता और मूर्खता दोनों की कोई सीमा नहीं है। दूसरों के विश्वास और कार्य को असंगत का ठप्पा लगा देना बहुत आसान है, पर यदि हम स्वयं को देखें, हम सब वहीं हैं और वही करते हैं, शायद अलग तरीके से फिर भी एक जैसे।
आत्म समर्पण के लिए आवश्यक नहीं है कि आप अपनी आँखें बंद कर लीजिये, अपने कान बंद कर लीजिये और कोई प्रश्न मत पूछिये, बल्कि, इसका अर्थ है संसार को उसकी (ईश्वर) दृष्टि से देखिये, अपने अंतरात्मा की आवाज़ पर ध्यान दीजिये, और धैर्यपूर्वक उसके (ईश्वर के) उत्तर को समझने का प्रयास कीजिये। वस्तुतः, सच्चा समर्पण हर जाँच या परीक्षा को सहन करता है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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