Re: मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत
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दादा जी मुर्गियों को दाना दे कर मुड़े ही थे कि कि उन्हें अशोक आता हुआ दिखाई दिया. अशोक के साथ कोई भद्र पुरुष भी थे. अशोक ने दादा जी से उनका परिचय करवाया, “दादा जी आज मैं अपने स्कूल के प्रिन्सिपल साहब को आपसे मिलवाने लाया हू- आप हैं डॉ. ठाकुर ... और सर ये हैं दादा जी, जिनके बारे में मैंने आपको बताया था.”
दोनों गर्मजोशी से मिले. कुछ देर इधर उधर की बातें चलीं. दोनों ने अशोक की बहुत प्रशंसा की. प्रिन्सिपल साहब ने दादा जी को बताया कि अशोक का बनाया हुआ एक यंत्र राष्ट्रीय विज्ञान खोज प्रदर्शनी में बहुत प्रशंसित हुआ है. उन्होंने कहा,
“अशोक ने आपके बारे में ज़िक्र किया था. आपके बारे में सुन कर मैं आपसे मिलना चाहता था. परन्तु इधर प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रमों में व्यस्त रहने के कारण आपसे मिल न सका. मैं चाहता हूँ कि इस सत्कार्य में आपका योगदान भी लिया जाये. नगर के बहुत से इलाकों में हमने ऐसे केंद्र आरम्भ किये हैं जहां गरीब, अनपढ़, मजदूर स्त्री-पुरुषों को लिखना पढ़ना सिखाया जा सके. उनके जीवन में परिवर्तन लाया जा सके. ऐसा एक केंद्र आपके क्षेत्र में भी खोलने का विचार है. अभी स्थान का प्रबंध नहीं हो पाया. मुझे मालूम है आप यहां अकेले रहते हैं. यदि आप एक कमरे का प्रबंध इस कार्य के लिए कर सकें तो केंद्र शीघ्र ही कार्य शुरू कर सकता है. आप यदि चाहें तो यहाँ अध्यापन भी कर सकते हैं.एक दिन में लगभग दो घंटे का कार्य हुआ करेगा. यह कार्य हम सब लोगों को मिलजुल कर करना है. मुझे आप से बहुत आशाएं हैं महोदय.”
दादा जी इस कार्यक्रम से बहुत प्रभावित हए और इस बात से भी कि प्रिन्सिपल साहब निस्वार्थ भाव से इस कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे. अगले दस दिनों में सभी तैयारियां कर ली गईं और कक्षाएं शुरू हो गईं.
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