[IMG][/IMG]युग का दीपक
वह था मर्द जो अंतिम क्षण तक अड़ा रहा
वह था सिंह जो उस वेदी पर खड़ा रहा
बलिदान का क्षण वह अनोखा
वो वीर फंदे को चूम रहा था
चमक उठा मस्तक
दमक रहा मुख उज्जवल था
वह तूफ़ान सैलाब नसों मैं
दिल मैं भाव वासंती था
देखा न देखा ऐसा यह वीरों का वसंत
मर मिटने की यह भावना
ये अनुराग ये प्रेम महान
उन्नत होती संस्कृति तुमसे
तुम्हारा सदा रहे दिनमान