Re: तीन सौ रामायणें :: ए.के. रामानुजन
कितनी रामायणें? तीन सौ? तीन हज़ार? कुछ रामायणों के अंत में कभी-कभी यह सवाल पूछा जाता है कि रामायणों की कुल संख्या क्या रही है? और इस सवाल का उत्तर देने वाली कहानियां भी हैं। उनमें से एक कहानी यों है।
एक दिन राम अपने सिंहासन पर बैठे हुए थे कि उनकी अंगूठी गिर गयी। गिरते ही ज़मीन को छेदती हुई अंगूठी उसी में खो हो गयी। राम के विश्वसनीय अनुचर, हनुमान, उनके चरणों में बैठे थे। राम ने उनसे कहा, ''मेरी अंगूठी खो गयी है। उसे ढूंढ़ लाओ।''
हनुमान तो ऐसे हैं कि वे किसी भी छिद्र में घुस सकते हैं, वह कितना भी छोटा क्यों न हो! उनमें छोटी-से-छोटी वस्तु से भी छोटा और बड़ी-से-बड़ी वस्तु से भी बड़ा बन जाने की क्षमता थी। इसलिए उन्होंने अतिलघु आकार धारण किया और छेद में घुस गये।
चलते गये, चलते गये, चलते गये और अचानक आ गिरे पाताललोक में। वहां कई स्त्रियां थीं। वे कोलाहल करने लगीं,, ''अरे, देखो देखो, ऊपर से एक छोटा-सा बंदर गिरा है!'' उन्होंने हनुमान को पकड़ा और एक थाली में सजा दिया। पाताललोक में रहने वाले भूतों के राजा को जीवजंतु खाना पसंद है। लिहाज़ा हनुमान शाक-सब्ज़ियों के साथ डिनर के तौर पर उसके पास भेज दिये गये। थाली पर बैठे हनुमान पसोपेश में थे कि अब क्या करें।
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