Re: ------------गुस्सा------------
मित्रों अब मैं क्रोध के सम्बन्ध में अपनी बात आगे बढाता हूं !
मित्रों सदियों से ऋषि—मुनि, साधु—संत कहते आये है कि ये मत करो, वो मत करो ! ..और कोई पुछ ले कि क्यो ? तो वो कारण भी बता देते है कि इससे ये होगा... उससे वो हो जायेगा !!
...और ये सब कहते सुनते सदियां बित गई पर कोई सुधारा नहीं हुआ ! सब कुछ जस का तस है !
...कारण कि उन्होने कभी भी वास्तविकता को लोगो में परोसा ही नहीं ! ...और इसका भी कारण था कि इन सब बुराईयों को सही रूप में समझने के लिए पर्याप्त धैर्य, लगन, चिन्तन, मनन, विषद् अध्ययन, और व्यवहारि ज्ञान की आवश्यकता थी ! जिसकी साधारण जन मानस में अपेक्षा व्यर्थ थी !.....और कदाचित् बताते भी तो निरसता के कारण उब कर भाग जाते !
इसीलिए उन्होने इसे सरस बनाया और विभीन्न कहानियों और दृष्टान्तो से इन बुराईयों से अवगत कराया और इनसे होने वाले नुकसान आदि को बताया !
क्रमश:....
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