सुख दुःख की अनुभूति
दुःख सुख की अनुभूति
(स्व. वजू कोटक)
उनके चरणों में जैसे ही मैंने अपना सर रखा, मेरी आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह निकली. चाँदनी रात में जैसे हिमालय मधुर स्वर में बोला हो, ठीक उसी तरह आप मिठास भरे स्वरों में बोलते हुए महसूस हुए.
‘वत्स, लगता है जैसे पैरों पर मोती गिर रहे हों.’
‘हाँ, ये मेरे आँसू हैं.’
‘मुझसे मिलकर तुझे इतनी ख़ुशी हुई?’
‘कृपानाथ, ये आँसू ख़ुशी के नहीं दुःख के हैं.’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 09-11-2015 at 09:54 PM.
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